रामगढ़ : राधा गोविन्द विश्वविद्यालय के विधि विभाग द्वारा बुधवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य और ऐतिहासिक आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के विशाल ऑडिटोरियम में आयोजित इस संगोष्ठी में देशभर से आए शिक्षाविदों, न्यायविदों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। कुल 510 प्रतिभागियों ने पंजीकरण कर इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का हिस्सा बनकर इसे विशेष बना दिया।
संगोष्ठी का उद्घाटन झारखंड उच्च न्यायालय, रांची के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस डॉ. एस.एन. पाठक, कुलाधिपति बी.एन. साह, सचिव प्रियंका कुमारी, कुलपति प्रो. (डॉ.) रश्मि, कुलसचिव प्रो. (डॉ.) निर्मल कुमार मंडल और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने स्व. गोविन्द साह और स्व. राधा देवी के प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन कर किया।
कुलपति का स्वागत भाषण : राष्ट्र निर्माण में शोध की अनिवार्यता संगोष्ठी की शुरुआत कुलपति प्रो. (डॉ.) रश्मि के स्वागत संबोधन से हुई। उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्र के विकास का आधार मजबूत शोध, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आलोचनात्मक सोच है। उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी भावी पीढ़ियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संवैधानिक जटिलताओं को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देगी।
पूर्व न्यायाधीश डॉ. एस.एन. पाठक का संबोधन : तीनों अंगों को संविधान के दायरे में रहना होगा मुख्य अतिथि जस्टिस (सेवानिवृत्त) डॉ. एस.एन. पाठक ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर विस्तृत और प्रभावशाली व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा—
“एक राष्ट्र, एक चुनाव तभी संभव है जब लोकतंत्र के तीनों स्तंभ—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—मूल संवैधानिक सिद्धांतों का सम्मान करते हुए एकजुट होकर काम करें। इसके लिए कई मामलों में संवैधानिक संशोधन अनिवार्य होंगे।”
उन्होंने इस विषय पर गहन विश्लेषण करते हुए कहा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में बार-बार होने वाले चुनाव प्रशासनिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ पैदा करते हैं। इसीलिए चुनावी प्रणाली में सुधार पर गंभीर चर्चा आवश्यक है।
अत्यधिक चुनाव व्यय से विकास प्रभावित : डॉ. पंकज सोनी दूसरे वक्ता, ब्ल्यू फाउंडेशन रांची के चेयरमैन डॉ. पंकज सोनी ने कहा कि लगातार होने वाले चुनावों पर होने वाला भारी खर्च देश की अर्थव्यवस्था पर भार बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि चुनावों का एकीकरण होता है तो धन की बचत के साथ प्रशासनिक व्यवस्था भी अधिक प्रभावी बन सकेगी।
कुलाधिपति का संदेश : संगोष्ठी ज्ञान और शोध की नई दिशा कुलाधिपति बी.एन. साह ने अपने संबोधन में इस संगोष्ठी को “ज्ञान-विस्तार का उत्कृष्ट मंच” बताया। उन्होंने कहा—
“राष्ट्रीय संगोष्ठी किसी भी विषय को गहराई से समझने, विचारों का आदान-प्रदान करने और नए दृष्टिकोण विकसित करने का अवसर प्रदान करती है।”
उन्होंने प्रतिभागियों को शोध की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
चार सत्रों में चले चर्चाएँ, शोधार्थियों ने प्रस्तुत किए पेपर संगोष्ठी चार समांतर तकनीकी सत्रों में आयोजित की गई, जिनमें देशभर के शोधार्थियों ने अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए। हर सत्र में विशेषज्ञों ने संवैधानिक पहलुओं, चुनावी व्यवस्था, राजनीतिक स्थिरता, प्रशासनिक संरचना और विधिक सुधारों पर विस्तृत चर्चा की। विधि विभाग के व्याख्याता महेंद्र मंडल और आलोक आंबेडकर ने कार्यक्रम का नेतृत्व किया, जबकि मंच संचालन डॉ. रंजना पांडेय और डॉ. अमरेश पांडेय ने किया।
सचिव का संदेश : शोध और आलोचनात्मक सोच से बनेगा मजबूत समाज सचिव प्रियंका कुमारी ने कहा कि इस प्रकार की संगोष्ठियाँ छात्रों और शोधार्थियों को आलोचनात्मक सोच विकसित करने और समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए प्रेरित करती हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का लक्ष्य केवल शिक्षा प्रदान करना ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिक तैयार करना है।
समापन और धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम का समापन कुलसचिव प्रो. (डॉ.) निर्मल कुमार मंडल के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। उन्होंने कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर आधारित यह संगोष्ठी विद्यार्थियों को भारतीय लोकतंत्र और उसके संवैधानिक ढांचे को समझने में अत्यंत सहायक सिद्ध होगी। राष्ट्रीय गान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।