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नवमी पूजा: रजरप्पा, भद्रकाली और देवड़ी में श्रद्धालुओं का सैलाब

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शारदीय नवरात्रि पर झारखंड के शक्तिपीठों में भव्य श्रृंगार, जुटे हज़ारों श्रद्धालु

मुनादी लाइव विशेष : शारदीय नवरात्रि के अवसर पर झारखंड के विभिन्न शक्तिपीठों और प्रसिद्ध मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। नवमी पूजा के मौके पर रजरप्पा स्थित माँ छिन्नमस्तिका मंदिर, चतरा के इटखोरी स्थित माँ भद्रकाली मंदिर, रांची के तमाड़ में देवड़ी मंदिर और देवघर के मधुपुर स्थित पाथलेश्वरी मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। भव्य श्रृंगार, विशेष अनुष्ठान और परंपरागत बलि रस्मों के बीच श्रद्धालु देवी माँ के दर्शन और आशीर्वाद के लिए जुटे।

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रजरप्पा: 10 लाख की लागत से सजा माँ का दरबार
रामगढ़ ज़िले के रजरप्पा स्थित माँ छिन्नमस्तिका मंदिर इस अवसर पर दुल्हन की तरह सजाया गया है। मंदिर पुजारी संतोष कुमार ने बताया कि इस वर्ष मंदिर की सजावट पर लगभग 10 लाख रुपये खर्च किए गए। 11 प्रकार के फूलों से मंदिर को सजाया गया है, जिनमें गुलाब, गेंदा, रजनीगंधा, गुलदाउदी, नीलकंठ, हाइड्रेंजिया और राजकेशर प्रमुख हैं। इनमें से अधिकतर फूल दिल्ली और बेंगलुरु से मंगाए गए।

सुबह से ही माँ के दरबार में पूजा-अर्चना और मंत्रोच्चार का सिलसिला जारी रहा। प्रतिदिन सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक भजन और मंत्रोच्चार होते हैं, जबकि शाम को आरती और श्रृंगार कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। विजयादशमी तक करीब 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के यहाँ पहुँचने की उम्मीद है। मंदिर में सालभर माँ को खीर का प्रसाद अर्पित किया जाता है, लेकिन दशहरे पर मछली का प्रसाद विशेष रूप से चढ़ाया जाता है, जो यहाँ की अनूठी परंपरा है।

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भद्रकाली मंदिर: अहंकार की प्रतीकात्मक बलि
चतरा जिले के इटखोरी स्थित प्राचीन भद्रकाली मंदिर में भी नवमी पूजा का आयोजन धूमधाम से हो रहा है। मुख्य पुजारी नरसिंह तिवारी ने बताया कि यहाँ प्रतिदिन सुबह 4 बजे से 8 बजे तक मंत्रोच्चार और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

महाअष्टमी के दिन भक्त केवल पुष्प अर्पित कर दर्शन करते हैं, जबकि नवमी पर दोपहर 1:54 बजे कुष्मांडा बलि की रस्में पूरी होंगी। इसमें भक्त अपने ‘अहंकार’ की बलि अर्पित करेंगे। मंदिर की मान्यता है कि माँ यहाँ राक्षसों का वध कर लक्ष्मी स्वरूपा के रूप में कमल पर विराजमान होती हैं।

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देवड़ी मंदिर: संधि बलि का आयोजन
राजधानी रांची से सटे तमाड़ के प्रसिद्ध देवड़ी मंदिर में मंगलवार को संधि बलि की रस्में पूरी की जाएँगी। यहाँ देवी माँ को गन्ना अर्पित किया जाता है। बुधवार को महानवमी के अवसर पर बकरे, भेड़ और भैंस के बछड़ों की बलि दी जाएगी।

देवड़ी मंदिर का आकर्षण इसकी सोलह भुजाओं वाली देवी माँ की मूर्ति है। यहाँ एक विशेष परंपरा देखने को मिलती है, जहाँ आदिवासी पुजारी (पाहन) ब्राह्मण पुजारियों के साथ मिलकर अनुष्ठान और पूजा करते हैं।

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पाथलेश्वरी मंदिर: 500 साल पुराना शक्तिपीठ
देवघर जिले के मधुपुर में स्थित प्रसिद्ध पाथलेश्वरी मंदिर में भी नवमी पूजा के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। यह मंदिर माँ काली को समर्पित है और लगभग 500 वर्ष पुराना है।

मंदिर पुजारी ने बताया कि राजा दिग्विजय सिंह को स्वप्न में माँ काली ने दर्शन देकर यहाँ अपनी मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया था। उसी के बाद कोलकाता से मूर्ति लाकर यहाँ स्थापित की गई। शारदीय नवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा-अर्चना और भव्य श्रृंगार किया जाता है।

श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब
चारों मंदिरों में नवरात्रि की नवमी पर हजारों श्रद्धालु दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए पहुँचे। श्रद्धालुओं ने कहा कि यहाँ आकर माँ का आशीर्वाद पाना जीवन को सार्थक बनाता है। भक्तों का मानना है कि माँ छिन्नमस्तिका, माँ भद्रकाली, माँ देवड़ी और माँ पाथलेश्वरी सभी अपनी कृपा से हर मनोकामना पूरी करती हैं।

प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था
रामगढ़, चतरा, रांची और देवघर जिला प्रशासन ने मंदिर परिसरों और आसपास सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की है। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए पुलिस बल, दंडाधिकारी और स्वयंसेवकों की तैनाती की गई है।

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