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सत्येंद्रनाथ तिवारी की हुंकार: चुनाव हारने के बावजूद आदिवासियों और गरीबों के हक की लड़ाई जारी

अभय तिवारी, गढ़वा : गढ़वा जिले के मेराल प्रखंड के बनूआ गांव में आयोजित आदिवासी सम्मेलन में पूर्व विधायक सत्येंद्रनाथ तिवारी ने जोरदार हुंकार भरते हुए अपने संघर्ष की कहानी साझा की। उन्होंने कहा कि गढ़वा विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद, उन्होंने आदिवासियों और गरीबों के हक के लिए लड़ाई कभी नहीं छोड़ी। तिवारी ने बताया कि उनकी इस लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा तब रहा जब उन्होंने 250 आदिवासी परिवारों की लूटी गई जमीन को वापस दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह लड़ाई उन्होंने तब लड़ी जब स्थानीय नेता और प्रशासन आदिवासियों की आवाज़ को अनसुना कर रहे थे।

सम्मेलन के दौरान तिवारी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जहां उन्होंने आदिवासी समाज की समस्याओं और उनके हक की बात की। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका उद्देश्य केवल सत्ता में रहना नहीं है, बल्कि जनता की सेवा करना है। तिवारी ने कहा कि भले ही वह चुनाव हार गए हों, लेकिन गरीब और आदिवासी समुदाय की लड़ाई से उन्होंने कभी पीछे नहीं हटे। उनके अनुसार, स्थानीय विधायक और पेयजल स्वच्छता मंत्री मिथलेश कुमार ठाकुर और पूर्व विधायक गिरिनाथ सिंह जैसे नेता आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करवाने में मदद कर रहे थे। उन्होंने दावा किया कि दबंगों के सहारे आदिवासियों की जमीन पर कब्जा किया गया, और इन नेताओं ने इस अन्याय को रोकने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि इसे बढ़ावा दिया।
तिवारी ने बताया कि आदिवासियों ने पहले जिला प्रशासन और स्थानीय विधायक व मंत्री से मदद मांगी, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। निराश होकर आदिवासी उनके पास आए और अपनी परेशानी साझा की। तिवारी ने आश्वासन दिया कि वह नेताओं की तरह सिर्फ वादे नहीं करेंगे, बल्कि उनकी जमीन वापस दिलवाने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे। तिवारी ने तुरंत बनूआ गांव पहुंचकर लोगों से जानकारी हासिल की और वहां से आदिवासियों की जमीन की लड़ाई शुरू की। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ जमीन की नहीं, बल्कि आदिवासियों के अधिकारों और सम्मान की लड़ाई थी, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक जीतकर 250 आदिवासी परिवारों को उनकी जमीन वापस दिलवाई।

सम्मेलन के दौरान तिवारी ने सामंतवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को और तेज करने का संकल्प लिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक आदिवासियों और गरीबों को उनका पूरा हक नहीं मिल जाता। उन्होंने मिथलेश कुमार ठाकुर और गिरिनाथ सिंह पर भी तीखा हमला किया, आरोप लगाते हुए कहा कि ये नेता आदिवासियों की जमीन हड़पने में दबंगों का साथ दे रहे थे।
तिवारी ने अपने भाषण में एक और बड़ा मुद्दा उठाया—हर घर जल नल योजना, जिसके तहत केंद्र सरकार ने झारखंड को तीन लाख साठ हजार करोड़ रुपये दिए थे, ताकि हर घर में पानी पहुंचे। लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि इस योजना के लिए दिए गए पैसे का सही इस्तेमाल नहीं हुआ, और आज भी झारखंड में इस योजना के तहत एक भी घर तक पानी नहीं पहुंचा है। उन्होंने कहा कि अगर मंत्री मिथलेश कुमार ठाकुर इस पैसे का हिसाब नहीं दे सकते, तो उन्हें बनूआ के पहाड़ पर चढ़कर 50 बार माफी मांगनी चाहिए।



इस आदिवासी सम्मेलन का आयोजन उन आदिवासी परिवारों द्वारा किया गया था, जिनकी जमीन तिवारी ने वापस दिलवाई थी। यह आयोजन उनके प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए किया गया था, जहां तिवारी का भव्य स्वागत और अभिनंदन किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान आदिवासी समुदाय के लोग बहुत खुश और उत्साहित नजर आए, क्योंकि उन्हें अपनी लूटी गई जमीन वापस मिल चुकी थी।
सत्येंद्रनाथ तिवारी ने अपने समर्पण और संघर्ष का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिससे यह साफ हुआ कि वह केवल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि आदिवासियों और गरीबों के वास्तविक हक के लिए संघर्षरत हैं। उनका यह संघर्ष अब भी जारी है, और उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वह किसी भी कीमत पर सामंतवादी ताकतों के खिलाफ लड़ते रहेंगे।