अजेय हेमंत, कल्पना का करिश्मा और सरमा,सुदेश की नाकामी ने डुबोई भाजपा की नैया

Amit Kumar : झारखंड विधानसभा चुनावों में INDIA गठबंधन ने ऐतिहासिक जीत हासिल की। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने 34 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर अपनी ताकत दिखाई, और गठबंधन ने कुल 55 सीटें जीतीं। इस जीत में जहां हेमंत सोरेन का कुशल नेतृत्व अहम रहा, वहीं उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की भूमिका ने इस सफलता को नई ऊंचाई दी। दूसरी ओर, एनडीए गठबंधन, खासकर भाजपा, अपने तमाम बड़े नेताओं और संसाधनों के बावजूद जनता का भरोसा जीतने में नाकाम रही।

कल्पना सोरेन: जीत की चुपचाप नायिका
हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन इस बार के चुनावों में झामुमो के लिए छुपा हुआ तुरुप का पत्ता साबित हुईं।

ग्रामीण इलाकों में प्रभाव: कल्पना सोरेन ने ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में झामुमो के लिए मजबूत समर्थन जुटाया। उनकी सरल और प्रभावी भाषण शैली ने महिलाओं और युवाओं के बीच गहरी छाप छोड़ी।
सामाजिक मुद्दों पर जोर: उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा, और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा, जो जनता से सीधे जुड़ने में कारगर साबित हुए।


जमीनी कनेक्ट: कल्पना ने हेमंत सोरेन के साथ 100 से अधिक सभाएं कीं और जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत किया। उनकी उपस्थिति ने झामुमो की छवि को और अधिक विश्वसनीय और जनता से जुड़ा हुआ दिखाया।
एनडीए की हार: बड़े चेहरे, कमजोर रणनीति
- बाहरी नेताओं पर निर्भरता:
एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और अन्य केंद्रीय नेताओं को मैदान में उतारा। छत्तीसगढ़, असम और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने भी प्रचार किया, लेकिन उनका राष्ट्रीय एजेंडा झारखंड के स्थानीय मुद्दों पर असर नहीं डाल सका।
स्थानीय नेताओं की उपेक्षा: भाजपा ने अपने झारखंडी नेताओं को प्रचार में पीछे रखा, जिससे पार्टी का जमीनी कनेक्शन कमजोर पड़ा।


विवादास्पद मुद्दे: बांग्लादेशी घुसपैठ और सांप्रदायिक नारों पर जोर देने की रणनीति जनता को रास नहीं आई।
- आजसू की नाकामी:
एनडीए सहयोगी आजसू पार्टी ने चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका दिया।
आजसू ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन शायद केवल एक पर जीत हासिल कर सके।
पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो खुद सिल्ली सीट से हारते नजर आ रहे हैं, जहां झामुमो के अमित महतो उन्हें पछाड़ रहे हैं।
सीट बंटवारे में आजसू और भाजपा के बीच खींचतान ने दोनों पार्टियों को नुकसान पहुंचाया।
हेमंत और कल्पना की जोड़ी का करिश्मा
इस चुनाव में हेमंत और कल्पना सोरेन की जोड़ी झामुमो और गठबंधन के लिए गेम-चेंजर साबित हुई।
जेल भेजने की कोशिश का उल्टा असर: भाजपा ने हेमंत पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए उन्हें जेल भेजने की कोशिश की। लेकिन जनता ने इसे राजनीतिक साजिश मानते हुए उनके पक्ष में वोट किया।
महिलाओं और युवाओं का समर्थन: कल्पना सोरेन ने अपनी सभाओं में महिलाओं और युवाओं को प्रेरित किया। उन्होंने झारखंड के भविष्य के लिए महिलाओं की भागीदारी और उनके अधिकारों को केंद्र में रखा।
सामूहिक नेतृत्व: हेमंत और कल्पना ने मिलकर न केवल गठबंधन को मजबूत किया, बल्कि एक ऐसा नेतृत्व पेश किया जो राज्य के हर वर्ग से जुड़ता हुआ दिखा।
कांग्रेस और राजद का प्रदर्शन
कांग्रेस: 15-16 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस ने गठबंधन में अपनी भूमिका निभाई। हालांकि यह पिछले प्रदर्शन से थोड़ी कम है, लेकिन झामुमो के सहयोग से यह नुकसान ज्यादा महसूस नहीं हुआ।
राजद: राजद ने भी 4 सीटों पर जीत दर्ज की। पलामू से लेकर संथाल तक उसकी उपस्थिति ने गठबंधन को और मजबूती दी।
भाजपा के लिए सबक और आजसू पर पुनर्विचार
स्थानीय नेतृत्व को प्राथमिकता: भाजपा को यह समझना होगा कि झारखंड जैसे राज्यों में बाहरी चेहरों से ज्यादा स्थानीय नेतृत्व पर भरोसा करना जरूरी है।
आजसू पर पुनर्विचार: आजसू की खराब प्रदर्शन ने गठबंधन के लिए नई मुश्किलें खड़ी की हैं। भाजपा को इसके साथ अपने रिश्ते पर दोबारा विचार करना होगा।
यह चुनाव झारखंड में हेमंत और कल्पना सोरेन की जोड़ी की ताकत और भाजपा की रणनीतिक कमजोरियों का बड़ा सबक है। जहां हेमंत का अनुभव और कल्पना का जमीनी जुड़ाव गठबंधन को विजय दिलाने में अहम रहा, वहीं भाजपा की बाहरी नेताओं पर निर्भरता और आजसू की नाकामी ने उसकी नैया डुबो दी। झारखंड की जनता ने एक बार फिर दिखा दिया कि वह विकास और स्थानीय नेतृत्व को प्राथमिकता देती है, न कि विभाजनकारी राजनीति को। हेमंत और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने झारखंड के राजनीतिक मंच पर नया इतिहास रच दिया है।