जमशेदपुर कोर्ट का फैसला: 9 साल बाद अलकायदा के 3 संदिग्ध आतंकी साक्ष्य के अभाव में बरी

जमशेदपुर कोर्ट फैसला
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2016 के अलकायदा संदिग्ध आतंकी मामले में कोर्ट का बड़ा फैसला, तीनों आरोपी साक्ष्य के अभाव में बरी

9 साल बाद आया फैसला, परिवार बोला— ‘न्याय की जीत हुई, आतंकवादी होने का कलंक हट गया’

जमशेदपुर एडीजे-वन विमलेश कुमार सहाय की अदालत ने तीनों आरोपियों को किया बरी

2016 में दर्ज हुआ था मामला, 16 गवाहों की गवाही के बाद अदालत ने सुनाया फैसला

पुलिस का कहना— ‘हम उच्च अधिकारियों से विचार-विमर्श कर आगे की कार्रवाई करेंगे’

जमशेदपुर : जमशेदपुर की अदालत ने अलकायदा से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार तीनों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। यह मामला 2016 का था, जब बिष्टुपुर थाना पुलिस और दिल्ली स्पेशल सेल की सूचना पर तीनों को गिरफ्तार किया गया था। इन पर आतंकी संगठनों से जुड़े होने, देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और युवाओं को आतंकी संगठन में भर्ती करने के आरोप लगे थे। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष तीनों आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा। 16 गवाहों की गवाही के बावजूद आरोपियों के खिलाफ ठोस प्रमाण नहीं मिल सके, जिसके कारण अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।

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कैसे शुरू हुई थी जांच?

2016 में दिल्ली स्पेशल टीम से मिली जानकारी के बाद जमशेदपुर पुलिस ने जांच शुरू की थी। इसके तहत बिष्टुपुर पुलिस ने कटकी को गिरफ्तार किया और पूछताछ के दौरान अहमद मसूद अकरम शेख ने आतंकी संगठन से जुड़े होने की बात स्वीकार की थी।मसूद ने दावा किया था कि 2003 में उसकी मुलाकात ओडिशा के अब्दुल रहमान उर्फ कटकी से हुई थी, जिसने सऊदी अरब में जिहादी प्रशिक्षण लिया था। उसने यह भी बताया था कि मानगो निवासी कलीमुद्दीन का घर संगठन का अड्डा था, जहां से युवाओं की भर्ती की जाती थी।जांच में यह भी सामने आया था कि धातकीडीह निवासी अब्दुल शामी पाकिस्तान में प्रशिक्षण ले चुका है और इस संगठन का हिस्सा बन चुका था। इस मामले में बिष्टुपुर थाना प्रभारी जीतेंद्र सिंह की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी।

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मुकदमे के दौरान क्या हुआ?

ट्रायल के दौरान कुल 16 गवाहों की गवाही दर्ज की गई। इनमें से कई गवाह मामले से जुड़े महत्वपूर्ण साक्ष्य देने में असमर्थ रहे। किसी भी गवाह ने तीनों आरोपियों के आतंकी संगठन से जुड़े होने के ठोस प्रमाण पेश नहीं किए।इस दौरान अदालत ने पाया कि पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूत अपर्याप्त थे। कोई ऐसा पुख्ता सबूत नहीं था, जिससे साबित हो सके कि तीनों आरोपी आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त थे।

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परिवार ने फैसले पर जताई राहत, बोले— ‘9 सालों तक सहनी पड़ी जिल्लत’

फैसला आने के बाद मोहम्मद अब्दुल रहमान अली उर्फ कटकी के भाई मोहम्मद ताहिर अली ने कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था और आज न्याय की जीत हुई है।उन्होंने कहा कि यह 9 साल हमारे परिवार के लिए बहुत ही कठिन थे। हमें समाज में हमेशा शक की नजर से देखा गया। ‘आतंकी’ शब्द सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, और हमारे परिवार पर इस कलंक का बोझ था। लेकिन आज अदालत ने साबित कर दिया कि मेरे भाई बेगुनाह थे।हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था। हमें समाज में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन आज सच सामने आ गया है।

पुलिस क्या कह रही है?

पुलिस ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे इस मामले में उच्च अधिकारियों से विचार-विमर्श कर आगे की कार्रवाई पर निर्णय लेंगे। बिष्टुपुर थाना प्रभारी ने कहा कि हम अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं। लेकिन हमें इस मामले की गहन समीक्षा करनी होगी और आगे की रणनीति पर विचार करना होगा।

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