भारत बंद 9 जुलाई 2025: श्रमिकों और किसानों के समर्थन में देशव्यापी हड़ताल, कई सेवाएं हो सकती हैं प्रभावित

सरकार की नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का बड़ा ऐलान
बैंक, कोयला, परिवहन और निर्माण क्षेत्र पर होगा असर
हड़ताल केवल विरोध नहीं, अधिकारों की मांग है: यूनियनें
जनता को दी गई चेतावनी और सलाह
राज्य प्रशासन अलर्ट मोड पर, धारा 144 की तैयारी
नई दिल्ली: भारत एक बार फिर देशव्यापी हड़ताल के दौर से गुजरने वाला है। 9 जुलाई 2025 को भारत बंद का आह्वान किया गया है, जो सामान्य हड़ताल से कहीं अधिक व्यापक और संगठित आंदोलन का रूप लेने जा रहा है। देश की 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनसे जुड़ी सैकड़ों क्षेत्रीय इकाइयों ने इस बंद का समर्थन करते हुए इसे सरकार की नीतियों के खिलाफ सामूहिक असहमति की आवाज बताया है। यूनियनों का आरोप है कि केंद्र सरकार की मौजूदा नीतियां न केवल मजदूर विरोधी हैं, बल्कि किसानों, छोटे व्यापारियों और आम नागरिकों के अधिकारों और आजीविका पर भी गहरी चोट कर रही हैं।

इस हड़ताल की पृष्ठभूमि में पिछले कुछ वर्षों में लेबर लॉ के पुनर्गठन, सरकारी संस्थानों के निजीकरण, और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी किसान हितैषी योजनाओं की उपेक्षा जैसे मुद्दे हैं। यूनियनों का कहना है कि सरकार द्वारा पारित किए गए चार श्रम संहिताएं (Labour Codes) मजदूरों के बुनियादी अधिकारों को कमजोर करती हैं, और निजी क्षेत्र को मजदूर शोषण की खुली छूट देती हैं। इसी तरह, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया को “राष्ट्र के संसाधनों की नीलामी” बताया गया है।
इस बंद के व्यापक प्रभाव की आशंका है। बैंक और बीमा जैसे वित्तीय क्षेत्र के लाखों कर्मचारी हड़ताल में भाग लेंगे, जिससे बैंकिंग सेवाएं, चेक क्लियरिंग, कैश हैंडलिंग और ग्राहक सेवाओं पर सीधा असर पड़ेगा। ट्रांसपोर्ट यूनियनों के शामिल होने से बस सेवाएं, ट्रक मूवमेंट और माल की ढुलाई प्रभावित हो सकती है। कोयला खनन क्षेत्र, जिसमें भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रमों में से एक कोल इंडिया लिमिटेड शामिल है, के भी लाखों मजदूर हड़ताल में भाग लेंगे, जिससे ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला पर संकट आ सकता है। निर्माण और हाइवे प्रोजेक्ट्स में लगे श्रमिकों की भागीदारी से इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को भी झटका लग सकता है।
ट्रेड यूनियन नेताओं ने स्पष्ट किया है कि यह बंद केवल सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि जनता के हितों की रक्षा के लिए है। उनका कहना है कि मजदूरों, किसानों और मेहनतकश तबकों के लिए आर्थिक सुरक्षा, स्थायी रोजगार और सामाजिक न्याय आज के दौर की सबसे बड़ी आवश्यकता है, लेकिन सरकार इन मांगों की अनदेखी कर रही है। कुछ नेताओं ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने संवाद के रास्ते नहीं खोले, तो आने वाले महीनों में यह आंदोलन और उग्र हो सकता है।
सरकार की ओर से अब तक इस हड़ताल को लेकर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन राज्यों के प्रशासनिक अधिकारियों को स्थिति नियंत्रण में रखने के निर्देश दिए गए हैं। कई राज्यों में धारा 144 लागू करने और अतिरिक्त पुलिस बल तैनात करने की तैयारियां भी की जा रही हैं। वहीं, आम जनता को सलाह दी जा रही है कि 9 जुलाई को बैंक संबंधी कार्य पहले ही निपटा लें, अत्यावश्यक यात्रा टालें, और ऑनलाइन सेवाओं पर निर्भर रहें।


विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी इस हड़ताल को नैतिक समर्थन दिया है। वामपंथी दलों और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए इसे जनविरोधी बताया है और श्रमिक संगठनों की मांगों को जायज ठहराया है।
भारत बंद 2025 केवल एक हड़ताल नहीं, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बनता जा रहा है। यह देखने वाली बात होगी कि सरकार इस आंदोलन को किस तरह से लेती है – एक विरोध या एक संदेश?
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