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झारखंड से जन्मा विश्वविजेता: एमएस धोनी की ज़िंदगी की वो अनसुनी कहानी जो आपको अंदर तक छू जाएगी

छोटे शहरों से निकलकर भी आप दुनिया बदल सकते हैं, बस अपने लक्ष्य से डिगना मत
मुनादी लाइव डेस्क : जब आप किसी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर की कल्पना करते हैं, तो आपके ज़हन में बड़े शहरों, उच्च सुविधा संपन्न अकादमियों और स्टारडम से भरे चेहरे आते हैं। लेकिन महेंद्र सिंह धोनी उस ढांचे को तोड़ते हैं। उनका जन्म, उनका संघर्ष, और उनकी कामयाबी – ये सब इस बात की मिसाल है कि अगर आपके भीतर जुनून है, तो किस्मत भी आपके आगे झुकती है। इस गौरवशाली खिलाड़ी की सफलता के पीछे की कहानी में कई ऐसे पहलू हैं, जो कम ही लोगों को पता है ।#

शुरुआत: एक साधारण परिवार, असाधारण सपने
7 जुलाई 1981 को झारखंड (तत्कालीन बिहार) के रांची में जन्मे धोनी, MECON कॉलोनी के छोटे से घर में बड़े हुए। उनके पिता पान सिंह MECON में जूनियर मैनेजमेंट पद पर कार्यरत थे। मां एक साधारण गृहिणी थीं। धोनी का स्कूल, DAV श्यामली, साधारण था, लेकिन वहां से एक असाधारण किस्मत का बीजारोपण हुआ। धोनी शुरू में फुटबॉल गोलकीपर थे। लेकिन जब उनके स्कूल के क्रिकेट कोच ने उनकी चपलता देखी, तो उन्हें विकेटकीपिंग के लिए चुना। यह वो मोड़ था, जहां एक क्रिकेट लीजेंड का जन्म हुआ।
धोनी की कहानी सिर्फ क्रिकेट की नहीं, बल्कि उम्मीद और आत्मविश्वास की भी है। रांची के MECON कॉलोनी में पले-बढ़े धोनी कभी क्रिकेटर बनने का सपना नहीं देखते थे। बचपन में ही आर्थिक स्थिति का सीमित होना और संसाधनों की कमी – इन सबके बावजूद धोनी ने हार नहीं मानी। वह टिकट कलेक्टर की नौकरी के लिए खड़गपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे, लेकिन उनका दिल मैदान में ही था। ड्यूटी के बाद वे घंटों प्रैक्टिस करते, कभी-कभी मैच खेलने के लिए छुट्टी भी ले लेते।


रेलवे की नौकरी और ‘छोटे शहर वाला बड़ा सपना’
2001 में धोनी को दक्षिण-पूर्व रेलवे में टिकट कलेक्टर की नौकरी मिली। खड़गपुर स्टेशन पर वे रात में टिकट चेक करते और दिन में प्रैक्टिस करते। वहीं के सहकर्मी बताते हैं कि धोनी बेहद अनुशासित, शांत और “कम बोलने वाले लेकिन काम में निपुण” व्यक्ति थे। पर मन तो मैदान में था। जब भी उन्हें छुट्टी मिलती, वे क्रिकेट टूर्नामेंट खेलने रांची या कोलकाता दौड़ जाते। घर में ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन धोनी ने कभी सपनों से समझौता नहीं किया।
अंतरराष्ट्रीय सफर की शुरुआत और आलोचना
2004 में भारत के लिए वनडे डेब्यू हुआ। लेकिन पहले ही मैच में ‘गोल्डन डक’। मीडिया ने कहा, “एक और फ्लॉप विकेटकीपर।” लेकिन धोनी की खासियत थी कि वे आलोचना को ईंधन की तरह इस्तेमाल करते थे। 2005 में पाकिस्तान के खिलाफ 148 रन की धुआंधार पारी ने उन्हें पूरे देश का हीरो बना दिया। लंबे बाल, आक्रामक स्टाइल और मैदान पर ‘नर्वसनेस-फ्री’ खेल – लोगों ने एक नए धोनी को अपनाया।
झारखंड से टीम इंडिया तक


2004 में बांग्लादेश के खिलाफ जब उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये लड़का क्रिकेट इतिहास का सबसे सफल कप्तान बन जाएगा। लेकिन उन्होंने न सिर्फ बल्ले से बल्कि अपने निर्णयों से भी सभी को चौंकाया।टीम इंडिया को 2007 का T20 वर्ल्ड कप, 2011 का वनडे वर्ल्ड कप और 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी जिताकर उन्होंने भारत को क्रिकेट का बादशाह बना दिया ।
कैप्टन कूल और 3 वर्ल्ड कप की कहानी
2007 में जब भारत ने युवा टीम के साथ T20 वर्ल्ड कप खेला, तब धोनी को कप्तानी मिली। यह चयन भी विवादों में घिरा था। लेकिन धोनी ने टीम को वर्ल्ड कप दिला कर आलोचकों को शांत कर दिया। फिर आया 2011 का वनडे वर्ल्ड कप – जब उन्होंने फाइनल में आखिरी छक्का मारकर भारत को 28 साल बाद विश्व विजेता बनाया। 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी जीत के बाद धोनी पहले ऐसे कप्तान बने, जिन्होंने ICC के सभी बड़े टूर्नामेंट जीते।
रांची की मिट्टी से जुड़े ‘राष्ट्रीय नायक’
आज जब क्रिकेटर मेट्रो शहरों में रहते हैं, धोनी आज भी रांची में हैं। उनका ‘कैलाशपति’ फार्महाउस न सिर्फ एक आशियाना है, बल्कि आत्मा है। वे गायों, घोड़ों, कुत्तों और मुर्गों से घिरे रहते हैं। दोस्तों के साथ बैठकर मछली पकड़ना, पुराने बाइक को खुद रिपेयर करना – यही उनका असली चेहरा है।
वे अक्सर कहते हैं – “मैं जहां से आया हूं, उसे कभी भूल नहीं सकता। झारखंड ने मुझे बनाया है।”
सेना के प्रति प्रेम और सादगी की कहानी
धोनी भारतीय सेना के टेरिटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल हैं। 2019 में कश्मीर में 15 दिन ड्यूटी कर चुके हैं। उन्होंने पैसा, ब्रांड, पावर – सबकुछ हासिल किया, लेकिन कभी भी घमंड नहीं किया। यही उन्हें अलग बनाता है।
धोनी: एक प्रेरणा
धोनी उन युवाओं के लिए उम्मीद हैं जो छोटे शहरों से बड़े सपने देखते हैं। उन्होंने दिखाया कि बड़े ब्रांड्स या शहरों की चमक जरूरी नहीं, अगर जुनून और धैर्य है तो कोई भी शिखर पर पहुंच सकता है। उनकी बायोपिक से लेकर हर वह तस्वीर जिसमें वे सेना की वर्दी में दिखते हैं – हमें याद दिलाते हैं कि धोनी सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और नेतृत्व के प्रतीक हैं।
धोनी: सिर्फ खिलाड़ी नहीं, एक दर्शन
धोनी सिखाते हैं:
- निर्णय तभी लें जब आप शांत हों।
- ज्यादा बोलना नहीं, ज्यादा करना ज़रूरी है।
- सादगी सबसे बड़ी शोभा है।
जन्मदिन पर Munadi Live की ओर से शुभकामनाएं
धोनी के 44वें जन्मदिन पर Munadi Live की ओर से उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं। वो आज भी लाखों दिलों की धड़कन हैं। वे न सिर्फ रांची, बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव हैं, उनके जीवन से हम सीख सकते हैं कि सादगी में ही असली ताकत होती है, और अपने कर्म के प्रति निष्ठा ही व्यक्ति को महान बनाती है।
वे हमें सिखाते हैं कि –
“छोटे शहरों से निकलकर भी आप दुनिया बदल सकते हैं, बस अपने लक्ष्य से डिगना मत।”