कलयुगी मां का शर्मनाक चेहरा: नवजात को जन्म देते ही सड़क किनारे फेंका, मासूम की मौत; गांव में सन्नाटा और गुस्सा
पाकुड़, झारखंड: झारखंड के पाकुड़ जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया। महेशपुर थाना क्षेत्र के नारायणगढ़ गांव स्थित पगला नदी पुल के पास शनिवार सुबह एक नवजात शिशु का शव मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई। बताया जा रहा है कि एक महिला ने बच्चे को जन्म देने के कुछ ही देर बाद उसे गमछे में लपेटकर सड़क किनारे फेंक दिया। जब तक किसी की नजर उस पर पड़ी, तब तक मासूम की सांसें थम चुकी थीं।
ग्रामीणों ने जब यह दृश्य देखा तो स्तब्ध रह गए। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई मां इतनी निर्दयी भी हो सकती है जो अपने ही खून को सड़क किनारे मरने के लिए छोड़ दे।
घटना की जानकारी और पुलिस की कार्रवाई
सूचना मिलते ही महेशपुर थाना प्रभारी रवि शर्मा पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और आसपास के ग्रामीणों से पूछताछ शुरू की। फिलहाल नवजात की मां और परिवार की पहचान नहीं हो पाई है। पुलिस ने ग्रामीणों की सहायता से नवजात के शव को दफनाया और मामले की जांच शुरू कर दी है।
थाना प्रभारी रवि शर्मा ने बताया कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि किसी महिला ने रात में या सुबह-सुबह प्रसव के बाद समाज के डर या बदनामी की वजह से बच्चे को फेंक दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि बच्चा जन्म के बाद कितनी देर जीवित था।
ग्रामीणों का बयान और आक्रोश
ग्राम प्रधान संतोष मुर्मू ने बताया कि सुबह वह मवेशी चरा रहे थे, तभी सड़क किनारे एक गमछा पड़ा देखा। जब पास जाकर देखा तो उसमें एक नवजात शिशु लिपटा हुआ था। उन्होंने तुरंत महेशपुर पुलिस को इसकी सूचना दी।
संतोष मुर्मू ने कहा, “यह दृश्य देखकर दिल कांप उठा। कोई मां अपने बच्चे के साथ ऐसा कैसे कर सकती है। यह मानवता के नाम पर कलंक है।”
ग्रामीणों में इस घटना को लेकर गहरा आक्रोश और दुख दोनों है। कोई कह रहा है कि यह समाज के दबाव का नतीजा है, तो कोई इस कृत्य को अमानवीय करार दे रहा है। गांव के कई लोगों की आंखें नम थीं।
“मां” शब्द को किया कलंकित
भारतीय समाज में मां को ईश्वर का रूप माना जाता है। कहा जाता है कि ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने मां को बनाया। लेकिन महेशपुर की इस घटना ने इस पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया है। जिस मां के आंचल में दुनिया की सबसे बड़ी सुरक्षा मानी जाती है, उसी मां ने अपने मासूम को मौत के हवाले कर दिया।
यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि मानवता के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न है। बच्चे के शव को देखने के बाद कई महिलाएं फूट-फूटकर रो पड़ीं। उन्होंने कहा कि चाहे कितनी भी मजबूरी क्यों न हो, किसी बच्चे को यूं फेंक देना माफी योग्य नहीं है।
संभावित कारण और सामाजिक विडंबना
पुलिस और ग्रामीणों का मानना है कि यह बच्चा किसी अविवाहित या विवश महिला का हो सकता है। समाज के डर, लोकलाज और तानों की वजह से उसने यह कदम उठाया होगा। झारखंड के ग्रामीण इलाकों में अविवाहित मां बनने पर अब भी सामाजिक तिरस्कार का डर महिलाओं को घेर लेता है।
ऐसे मामलों में न तो सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था होती है और न ही परामर्श या सहायता। नतीजतन, कई बार महिलाएं अपराध करने पर मजबूर हो जाती हैं। यह घटना समाज के उस कठोर पहलू को उजागर करती है, जहां मान-सम्मान के नाम पर मासूम जिंदगी की बलि दी जाती है।
प्रशासन और समाज की जिम्मेदारी
महेशपुर की यह घटना प्रशासन और समाज दोनों के लिए चेतावनी है। सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं — जैसे बाल संरक्षण सेवा, वन स्टॉप सेंटर, महिला हेल्पलाइन 181, लेकिन इनकी पहुंच गांवों तक नहीं दिखती। अगर समय पर मदद और परामर्श मिल पाता, तो शायद एक मासूम की जान बच जाती।
सामाजिक संगठनों और पंचायत प्रतिनिधियों को भी ऐसे मामलों में सतर्क रहना होगा। ग्रामीणों को जागरूक करना, अविवाहित गर्भवती महिलाओं की मदद करना और सुरक्षित प्रसव की सुविधा सुनिश्चित करना अब प्राथमिकता होनी चाहिए।
गांव में मातम और सन्नाटा
शाम तक नारायणगढ़ गांव में सन्नाटा पसरा रहा। बच्चे के शव को दफनाते वक्त पूरा गांव मौन खड़ा था। कोई बोल नहीं पा रहा था। हर कोई अपने-अपने ढंग से उस मासूम की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहा था।
महेशपुर पुलिस ने बताया कि आसपास के इलाकों की सभी आंगनवाड़ी सेविकाओं, आशा कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य केंद्रों को भी सतर्क कर दिया गया है ताकि उस महिला की पहचान हो सके जिसने यह अपराध किया।
महेशपुर की यह घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि हमारे समाज की सोच और संवेदनहीनता पर गहरा प्रहार है। जब तक समाज भय, तिरस्कार और मान-सम्मान के ढकोसले से बाहर नहीं आएगा, तब तक ऐसे मासूम जन्म लेते ही दम तोड़ते रहेंगे।