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पवन सिंह बदलेंगे शाहाबाद की हवा, अमित शाह ने ऐसे किया 22 सीटों पर गेम सेट

Amit Shah strategy

पवन सिंह की भाजपा में वापसी और उपेंद्र कुशवाहा से सुलह के बाद शाहाबाद में एनडीए को मिली नई उम्मीद, अमित शाह की रणनीति बनी चर्चा का विषय

पटना: बिहार की राजनीति में भोजपुरी स्टार और पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह की वापसी ने एक बार फिर सियासी समीकरणों को उलझा दिया है। भाजपा में पवन सिंह की घर वापसी और उपेंद्र कुशवाहा से उनकी सुलह ने शाहाबाद इलाके में भाजपा-एनडीए की उम्मीदें जगा दी हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही बिहार की 50 विधानसभा सीटों पर विशेष रणनीति तैयार कर चुके हैं, जिनमें शाहाबाद की 22 सीटें शामिल हैं। राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि पवन सिंह के भाजपा में लौटने से शाह की योजना को नया बल मिला है और पार्टी ने शाहाबाद के कठिन किले को साधने का गेम सेट कर दिया है।

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शाहाबाद: भाजपा का हमेशा से चुनौतीपूर्ण इलाका
बिहार के शाहाबाद क्षेत्र की राजनीति भाजपा के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रही है। यहां का चुनावी इतिहास देखिए—

  • 2015 विधानसभा चुनाव: एनडीए को 22 सीटों में से केवल 6 सीटों पर सफलता मिली।
  • 2019 लोकसभा चुनाव: चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा की जोरदार जीत हुई और पार्टी ने उम्मीदें जगाईं।
  • 2020 विधानसभा चुनाव: भाजपा का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा और महज 2 सीटें (आरा और बड़हरा) हाथ लगीं।
  • 2024 विधानसभा उपचुनाव: तरारी और रामगढ़ जीतकर भाजपा ने वापसी के संकेत दिए।
  • 2024 लोकसभा चुनाव: यहां एनडीए को करारी हार का सामना करना पड़ा और चारों सीटें विपक्ष के खाते में चली गईं।

स्पष्ट है कि शाहाबाद भाजपा के लिए कभी आसान नहीं रहा। यही कारण है कि अमित शाह ने इस इलाके पर विशेष फोकस किया और अब पवन सिंह की एंट्री से समीकरण बदलने की उम्मीद जताई जा रही है।

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पवन सिंह ने बदली थी हवा, कुशवाहा की कराई थी हार
2024 के लोकसभा चुनाव में पवन सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में काराकाट से चुनाव लड़ा। उनके उतरने से उपेंद्र कुशवाहा को करारा झटका लगा।

  • पवन सिंह को 2,74,723 वोट मिले।
  • उपेंद्र कुशवाहा को मात्र 1,71,761 वोट मिले और वे तीसरे स्थान पर चले गए।
  • राजा राम सिंह ने 3,80,581 वोटों के साथ जीत हासिल की।

स्पष्ट है कि पवन सिंह की स्टार पावर ने कुशवाहा के कोर वोट बैंक को विभाजित कर दिया, खासकर युवा और भोजपुरी प्रेमी तबके में। ग्रामीण क्षेत्रों में पवन सिंह ने लहर पैदा कर दी थी, जिसकी कीमत एनडीए को चुकानी पड़ी।

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अब सुलह से बनेगा नया समीकरण
राजनीतिक घटनाक्रम ने नया मोड़ तब लिया जब भाजपा ने पवन सिंह को दोबारा पार्टी में जगह दी और उपेंद्र कुशवाहा से उनकी सुलह करा दी। यह समझौता शाहाबाद में एनडीए को नई ऊर्जा दे सकता है।

  • पवन सिंह का भोजपुरी कनेक्शन ग्रामीण और युवा वोटरों को लुभाएगा।
  • उपेंद्र कुशवाहा की जातिगत पकड़ और संगठनात्मक ताकत गठबंधन को मजबूती देगी।
  • दोनों के एकजुट होने से वोटों का विभाजन रुकेगा और एनडीए का आधार बढ़ेगा।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के साथ आने से भाजपा को स्थानीय स्तर पर ऐसा आधार मिलेगा जो पहले बिखरा हुआ था।

शाह की रणनीति और गेम सेट की थ्योरी
अमित शाह ने बिहार के लिए पहले ही 50 सीटों पर फोकस किया है। इनमें शाहाबाद की 22 सीटों पर विशेष रणनीति बनाई गई है। शाह की राजनीति का फोकस जातिगत समीकरणों और लोकल स्टार पावर को जोड़ने पर है।

पवन सिंह को दोबारा भाजपा में लाना और उन्हें उपेंद्र कुशवाहा के साथ खड़ा करना इस रणनीति का अहम हिस्सा है। शाह की यही चाल भाजपा को शाहाबाद के किले में सेंध लगाने का मौका दे सकती है।

भाजपा के लिए क्या है उम्मीद
शाहाबाद में भाजपा के लिए यह समीकरण काफी फायदेमंद साबित हो सकता है—

  • युवा वोटरों पर पवन सिंह की पकड़।
  • जातिगत आधार पर उपेंद्र कुशवाहा की भूमिका।
  • भाजपा का कोर वोट बैंक पहले से मौजूद।

इन तीनों के मेल से भाजपा का शाहाबाद में मजबूत आधार बन सकता है। अब यह देखना होगा कि आने वाले चुनाव में यह गठजोड़ कितना असरदार साबित होता है।

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