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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी किसका वोट काटेगी – NDA, INDIA या दोनों?

Jan Suraj Party Jan Suraj Party

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य की राजनीति में एक नया समीकरण बन रहा है। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर अपनी जन सुराज पार्टी (JSP) को लेकर मैदान में उतर चुके हैं। उनके इस कदम ने NDA और INDIA दोनों गठबंधनों के भीतर चिंता बढ़ा दी है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि प्रशांत किशोर की पार्टी किसका वोट काटेगी और चुनावी नतीजों में किसे सबसे ज्यादा नुकसान होगा?

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जन सुराज पार्टी की पृष्ठभूमि
प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2024 को अपनी जन सुराज पार्टी की औपचारिक घोषणा की थी। जन सुराज अभियान पहले से ही गांव-गांव चल रहा था, लेकिन अब इसे राजनीतिक स्वरूप देकर सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी हो रही है। पार्टी ने ऐलान किया है कि उसके 90% प्रत्याशी नए चेहरे होंगे, ताकि पुराने नेताओं और गठबंधनों के खिलाफ जनता को एक विकल्प मिल सके।

प्रशांत किशोर का ‘वोट-कटवा’ बयान
स्वयं प्रशांत किशोर ने NDTV को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि उनकी पार्टी “vote cutter” है, लेकिन यह सिर्फ एक तरफ नहीं बल्कि दोनों तरफ से वोट काटेगी। उनका दावा है कि JSP किसी भी गठबंधन से तालमेल नहीं करेगी और स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी।

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NDA पर संभावित असर
BJP-जेडीयू गठबंधन को JSP से सबसे ज्यादा चुनौती मिल सकती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेतृत्व क्षमता को लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है। युवा और बदलाव चाहने वाले मतदाता JSP की ओर आकर्षित हो सकते हैं। अगर JSP ने NDA के वोट बैंक में सेंध लगाई तो यह बीजेपी और जेडीयू दोनों के लिए नुकसानदेह होगा।

INDIA गठबंधन पर असर
RJD-कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों को भी JSP के मैदान में उतरने से नुकसान हो सकता है। JSP की नई राजनीति और युवा उम्मीदवार उन वोटर्स को आकर्षित कर सकते हैं जो NDA के साथ-साथ RJD-कांग्रेस से भी नाराज हैं। हालांकि, RJD का पारंपरिक वोट बैंक अभी भी मजबूत माना जा रहा है।

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दोनों तरफ वोट-कटाई की रणनीति
विश्लेषकों का मानना है कि JSP दोनों गठबंधनों से वोट काट सकती है। ऐसे मतदाता जो लंबे समय से बदलाव की तलाश में हैं, वे JSP को एक विकल्प मान सकते हैं। यह तीसरी धारा बनने की दिशा में JSP का बड़ा दांव है।

JSP की चुनौतियाँ
हालांकि JSP के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। पार्टी ने अभी तक किसी उपचुनाव या बड़े चुनाव में अपनी ताकत साबित नहीं की है। संगठनात्मक ढांचा, प्रत्याशी चयन, फंडिंग और जातीय समीकरण जैसी बाधाएं JSP की राह मुश्किल कर सकती हैं।

कुल मिलाकर, JSP के मैदान में उतरने से बिहार के चुनावी समीकरण बदल सकते हैं। NDA को इसका अधिक नुकसान हो सकता है, जबकि INDIA गठबंधन भी दबाव महसूस करेगा। JSP के कारण तीसरा मोर्चा बन सकता है, जो युवा और बदलाव चाहने वाले मतदाताओं को आकर्षित करेगा।

बिहार की राजनीति में यह देखना दिलचस्प होगा कि JSP किस हद तक वोट काटती है और 2025 के चुनावी नतीजों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।

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