फ्रांस में सरकार विरोधी प्रदर्शन तेज, मैक्रों के इस्तीफे की मांग

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बजट कटौती के खिलाफ सड़कों पर उतरे 1 लाख से ज्यादा लोग, नेपाल के बाद यूरोप में भी भड़का जनाक्रोश

पेरिस: नेपाल के बाद अब फ्रांस में भी सरकार विरोधी प्रदर्शन तेज हो गए हैं। बजट कटौती, महंगाई और सरकारी नीतियों के खिलाफ लोगों का गुस्सा खुलकर सामने आ रहा है। बुधवार को राजधानी पेरिस समेत देश के कई बड़े शहरों में 1 लाख से ज्यादा लोग सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

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फ्रांस के कई हिस्सों—पेरिस, लियोन, मार्सेय और बोर्डो—में बुधवार को दिनभर विरोध प्रदर्शन हुआ। जगह-जगह पुलिस बल की तैनाती करनी पड़ी। प्रदर्शनकारियों के हाथों में तख्तियां और बैनर थे, जिन पर ‘मैक्रों इस्तीफा दो’, ‘बजट कटौती वापस लो’ और ‘हमारा अधिकार लौटाओ’ जैसे नारे लिखे थे।

बजट कटौती बनी बड़ी वजह
विशेषज्ञों का कहना है कि फ्रांस की मौजूदा सरकार ने हाल में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण योजनाओं में भारी बजट कटौती की है। इससे आम लोगों का जीवन कठिन हो गया है। पेंशन रिफॉर्म और बढ़ते कर के बोझ ने भी जनता को नाराज़ किया है। यह विरोध धीरे-धीरे संगठित रूप ले चुका है।

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नेपाल में हाल ही में सरकार के खिलाफ भड़के प्रदर्शनों के बाद अब फ्रांस में भी इसी तरह के हालात देखने को मिल रहे हैं। लोग महसूस कर रहे हैं कि सरकार उनके हितों की अनदेखी कर रही है।

विपक्षी दल भी साथ
फ्रांस के विपक्षी दलों ने भी इस प्रदर्शन का समर्थन किया है। वामपंथी पार्टियों ने कहा है कि सरकार का रवैया अलोकतांत्रिक है और जनता की आवाज़ को दबाने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने बजट कटौती और पेंशन सुधार के फैसले वापस नहीं लिए तो प्रदर्शन और तेज होंगे।

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पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प
रिपोर्टों के अनुसार, कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हल्की झड़प भी हुई। पेरिस के कुछ इलाकों में पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया। हालांकि प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे, लेकिन सरकार उन्हें रोकने के लिए बल प्रयोग कर रही है।

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सरकार की सफाई
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि बजट कटौती देश की आर्थिक मजबूती के लिए ज़रूरी है। उन्होंने अपील की कि लोग शांतिपूर्ण रहें और सरकार से संवाद करें। सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए ही फैसले लिए गए हैं।

नेपाल के बाद यूरोप में भी भड़का जनाक्रोश
विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल में जिस तरह सरकार विरोधी प्रदर्शनों ने राजनीतिक हलचल मचाई थी, उसी तरह अब फ्रांस में भी माहौल गरमाता जा रहा है। यह यूरोप के लिए भी चेतावनी है, क्योंकि कई देशों में आर्थिक दबाव और बजट कटौती की नीतियों के चलते असंतोष बढ़ रहा है।

भविष्य की तस्वीर
फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि फ्रांस में ये प्रदर्शन कितने लंबे चलेंगे, लेकिन इतना तय है कि जनता की नाराजगी और सड़कों पर उतरने की प्रवृत्ति यूरोप में बढ़ सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि सरकार ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए तो हालात और बिगड़ सकते हैं। फ्रांस के कई युवा नेताओं और सामाजिक संगठनों ने भी चेतावनी दी है कि यह आंदोलन सिर्फ बजट कटौती तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि सरकार के अन्य विवादित फैसलों के खिलाफ भी जनता अब आवाज़ बुलंद करेगी।

नेपाल के बाद फ्रांस में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन एक नए राजनीतिक परिदृश्य की ओर इशारा कर रहे हैं। यह जनता की बढ़ती नाराजगी और असंतोष का प्रतीक है। अब देखना होगा कि राष्ट्रपति मैक्रों इस संकट से कैसे निपटते हैं और जनता का विश्वास कैसे बहाल करते हैं।

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