IAS पूजा सिंघल के खिलाफ सरकार की चुप्पी पर ED का कोर्ट में वार, ‘Deemed Sanction’ की मांग

पूजा सिंघल अभियोजन स्वीकृति
Share Link

120 दिन में नहीं मिली अभियोजन की अनुमति, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट में पेश हुआ प्रवर्तन निदेशालय

रांची से अमित: झारखंड की चर्चित IAS अधिकारी पूजा सिंघल के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। ED ने दावा किया है कि राज्य सरकार से बार-बार अनुरोध के बावजूद पूजा सिंघल के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति (prosecution sanction) नहीं दी गई है। अब एजेंसी ने ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर करते हुए सरकार की चुप्पी को “Deemed Sanction” यानी मूक स्वीकृति मानने की मांग की है।

Maa RamPyari Hospital

क्या है पूरा मामला?
ED ने पूजा सिंघल के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग के आरोपों की लंबी जांच के बाद करीब 5 महीने पहले राज्य सरकार को अभियोजन स्वीकृति देने के लिए पत्र भेजा था। लेकिन निर्धारित 120 दिनों की समयसीमा समाप्त हो चुकी है और सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है।

ED ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2024 में दिए गए ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि यदि निर्धारित अवधि में अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जाती है, तो उसे “deemed sanction” माना जाना चाहिए।

whatsapp channel

Maa RamPyari Hospital

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति अनिवार्य है, लेकिन यदि सरकार 120 दिन के भीतर निर्णय नहीं देती है, तो इसे “मौन स्वीकृति” माना जा सकता है। इसी फैसले को आधार बनाकर अब ED ने पूजा सिंघल के मामले में न्यायालय से यही अनुरोध किया है।

क्यों नहीं दी सरकार ने स्वीकृति?
झारखंड सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला संवेदनशील प्रकृति का है, क्योंकि पूजा सिंघल एक वरिष्ठ महिला IAS अधिकारी हैं और झारखंड में पूर्व में कई महत्वपूर्ण पदों पर रही हैं। ऐसे में सरकार पर राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव की भी चर्चा हो रही है।

the-habitat-ad

ED की कार्रवाई और दलीलें
ED की याचिका में कहा गया है कि जांच में पूजा सिंघल की भूमिका स्पष्ट रूप से सामने आई है। मनी लाउंड्रिंग एक्ट के तहत जो साक्ष्य उपलब्ध हैं, उनके आधार पर आरोप तय करने के लिए अभियोजन की अनुमति आवश्यक है। जब सरकार यह अनुमति नहीं देती और न ही कोई जवाब देती है, तो इससे न्यायिक प्रक्रिया बाधित होती है।

RKDF

एजेंसी ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2024 के अलावा कई पूर्ववर्ती फैसलों को भी उद्धृत किया है, जिसमें “deemed sanction” की अवधारणा को न्यायोचित ठहराया गया है।

कौन हैं पूजा सिंघल ?
IAS पूजा सिंघल झारखंड कैडर की वरिष्ठ अधिकारी हैं, जो खनन, ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख विभागों में सेवाएं दे चुकी हैं। उनके खिलाफ मनरेगा घोटाला और अनियमित वित्तीय लेनदेन को लेकर कई जांच एजेंसियों ने कार्रवाई की है। साल 2022 में ED ने उनके आवास और अन्य ठिकानों पर छापेमारी कर कई करोड़ रुपये की नकदी जब्त की थी, जिसके बाद वे देशभर की सुर्खियों में आ गई थीं।

पूजा सिंघल केस झारखंड की नौकरशाही और राजनीतिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक बड़ा परीक्षण बन चुका है। यदि अदालत सरकार की चुप्पी को अभियोजन स्वीकृति मानती है, तो यह अन्य अफसरों पर कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। वहीं राज्य सरकार की चुप्पी कई सवाल भी खड़े कर रही है कि क्या सत्ता किसी को संरक्षण दे रही है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *