अवैध खनन पर सेटिंग-गेटिंग का खुला खेल।

अवैध खनन

लीज से बाहर खुदाई, करोड़ों का राजस्व घाटा, अफसर खामोश।

पाकुड़ से सुमित भगत की रिपोर्ट : जिले में अवैध पत्थर खनन कोई नई बात नहीं, लेकिन अब यह एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है—जिसमें खनन माफिया, विभागीय अफसर और ठेकेदार सबकी हिस्सेदारी तय है। हिरणपुर अंचल के बेलडीहा और मानसिंहपुर मोजा में चार बीघा से ज्यादा जमीन पर लीज सीमा से बाहर पत्थर की खुदाई कर डाली गई है। संजू, मुस्कान और राजा नामक लोगों के साथ-साथ फोर स्टार स्टोन वर्क्स नामक कंपनी का नाम इसमें सबसे ऊपर है। सूत्रों की मानें तो इस अवैध खनन की जानकारी जिला खनन विभाग को पहले से है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर अब तक सन्नाटा पसरा है।

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सरकारी खजाने को करोड़ों की चपत, जिम्मेदार मौन
खुलासा ये भी हुआ है कि फोर स्टार स्टोन वर्क्स ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लीज ली, और सेटिंग-गेटिंग के जरिए सारे कागजात तैयार करवा लिए। इसके बाद उन्होंने फिर से एनवायरमेंट क्लीयरेंस (EC) हासिल कर लिया—वो भी जमीन की असली हकीकत छुपाकर। सवाल यह उठता है कि जब असली खनन क्षेत्र कुछ और है, तो ईसी कैसे मिल गई? जवाब साफ है—सब कुछ पेपर सेटिंग पर आधारित है।

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पत्थर माफिया बेखौफ, अफसर जिम्मेदारी से बेपरवाह
सूत्रों की माने तो जिले के अधिकारी एक तरफ तो अवैध खनन पर कार्रवाई के निर्देश देते हैं, दूसरी तरफ विभाग के कुछ कर्मचारी माफियाओं को संरक्षण देते हैं। यही कारण है कि पत्थर व्यवसाई खुलेआम लीज सीमा से बाहर खुदाई कर रहे हैं, नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और सरकारी राजस्व को करोड़ों का नुकसान पहुंचा रहे हैं। जब पकड़े जाते हैं, तो चंद लाख टेबल के नीचे देकर बच निकलते हैं। यही नहीं, ज़मींदारों से लेकर अधिकारी तक सबके अपने-अपने हिस्से तय हैं। अफसर हों या ठेकेदार—झोला तैयार रहता है।

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सब जानते हैं, कोई बोलता नहीं
ये कहानी पहली बार नहीं लिखी जा रही। वर्षों से यही सिस्टम चला आ रहा है—अवैध खनन करो, विभागीय संरक्षण लो और पैसा बांटो। कार्रवाई नाम की कोई चीज़ न होती है, न होती नजर आती है।

जांच जरूरी, लेकिन कौन करेगा?
सवाल यही है—क्या जिला प्रशासन इस पूरे खेल की निष्पक्ष जांच कराएगा? क्या खनन विभाग, पॉल्यूशन बोर्ड और पर्यावरण मंत्रालय की मिलीभगत की परतें उधेड़ी जाएंगी?

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जवाब फिलहाल यही है—तू चल, मैं आया… झोला तैयार रखना।

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