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काठमांडू की सड़कों पर जनसैलाब, सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ फूटा गुस्सा

Social Media Ban Nepal Social Media Ban Nepal

Kathmandu Protest 2025: राजधानी में हालात बेकाबू, धारा 144 लागू, संसद भवन तक पहुंचे प्रदर्शनकारी

काठमांडू: नेपाल की राजधानी काठमांडू सोमवार को भारी उथल-पुथल का गवाह बनी। सोशल मीडिया बैन और बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ शांतिपूर्ण प्रदर्शन देखते ही देखते हिंसक रूप ले बैठा। न्यू बानेश्वर इलाके में हजारों की संख्या में युवाओं ने सरकार विरोधी नारे लगाए और संसद भवन की ओर मार्च किया। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच जमकर झड़प हुई, जिसके बाद जिला प्रशासन ने धारा 144 के तहत कर्फ्यू लागू कर दिया।

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मुख्य जिला अधिकारी (CDO) छबिलाल रिजाल ने बताया कि कर्फ्यू आदेश सोमवार दोपहर 12:30 बजे से रात 10 बजे तक प्रभावी रहेगा। आदेश के अनुसार संसद भवन के आसपास के कई इलाकों में लोगों की आवाजाही, सभा और प्रदर्शन पूरी तरह प्रतिबंधित है।

कैसे भड़की झड़प?
सुबह से ही न्यू बानेश्वर चौक पर युवाओं की भीड़ जुटने लगी। सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार को लेकर युवाओं ने “फ्री इंटरनेट” और “स्टॉप करप्शन” जैसे नारे लगाए। जैसे ही प्रदर्शनकारी संसद भवन की ओर बढ़े, पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए बैरिकेड लगाए।

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गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड तोड़ दिए और आगे बढ़ने लगे। इस दौरान स्थिति बिगड़ गई। पुलिस ने भीड़ को काबू करने के लिए वॉटर कैनन और आंसू गैस के गोले छोड़े। जवाब में प्रदर्शनकारियों ने पेड़ों की टहनियां, पत्थर और पानी की बोतलें पुलिस पर फेंकी। कुछ प्रदर्शनकारी तो संसद भवन परिसर तक पहुंच गए।

किन इलाकों में लागू हुआ कर्फ्यू?

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जिला प्रशासन द्वारा जारी आदेश के मुताबिक कर्फ्यू इन इलाकों में लागू किया गया है:

  • न्यू बानेश्वर चौक से पश्चिम की ओर एवरेस्ट होटल और बिजुलीबाजार आर्च ब्रिज तक
  • न्यू बानेश्वर चौक से पूर्व की ओर मिन भवन और शांतिनगर होते हुए टिंकुने चौक तक
  • न्यू बानेश्वर चौक से उत्तर की ओर आईप्लेक्स मॉल से रत्न राज्य सेकेंडरी स्कूल तक
  • दक्षिण की ओर शंखमूल से शंखमूल ब्रिज तक
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इन क्षेत्रों में किसी भी तरह की रैली, सभा, विरोध प्रदर्शन और आम लोगों की आवाजाही पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी गई है।

क्यों भड़का विरोध?
नेपाल सरकार ने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। युवाओं का आरोप है कि सरकार इंटरनेट की स्वतंत्रता छीन रही है और डिजिटल अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने भी युवाओं के गुस्से को हवा दी है।

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार लोकतंत्र को दबाने की कोशिश कर रही है। उनका कहना है कि सोशल मीडिया ही उनकी आवाज उठाने का सबसे बड़ा जरिया है, और उस पर बैन लगाना जनता के अधिकारों का हनन है।

नेपाल की राजनीति पर असर
नेपाल पहले ही राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है। आए दिन सत्ता परिवर्तन और गठबंधन की राजनीति के कारण सरकार पर भरोसा कमजोर हुआ है। ऐसे में यह विरोध प्रदर्शन सरकार के लिए नई चुनौती बनकर उभरा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार ने जल्द ही संवाद और समाधान की कोशिश नहीं की, तो यह आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है। खासकर युवाओं की बढ़ती नाराजगी नेपाल की राजनीति में नए समीकरण पैदा कर सकती है।

अंतरराष्ट्रीय नजरिया
नेपाल में सोशल मीडिया बैन और उसके खिलाफ हिंसक विरोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता का विषय बन गया है। नेपाल के पड़ोसी भारत और चीन की नजर इस घटना पर है, क्योंकि काठमांडू में अस्थिरता का असर पूरे क्षेत्र की राजनीति और सुरक्षा पर पड़ सकता है। मानवाधिकार संगठनों ने भी नेपाल सरकार से अपील की है कि वह नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करे और डिजिटल अधिकारों पर अंकुश न लगाए।

आगे क्या?
फिलहाल काठमांडू में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। पुलिस का कहना है कि हालात काबू में हैं और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। दूसरी ओर प्रदर्शनकारी संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर सोशल मीडिया बैन वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन और तेज किया जाएगा। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि नेपाल सरकार इस संकट को कैसे संभालती है। अगर सरकार ने युवा वर्ग की मांगों को नजरअंदाज किया, तो यह आंदोलन लंबे समय तक नेपाल की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।

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