रांची स्मार्ट सिटी की 618 एकड़ भूमि के म्यूटेशन पर मचा बवाल, कांग्रेस विधायक ने नामकुम सीओ दफ्तर में मचाया हंगामा, जमीन अधिग्रहण को बताया अवैध

स्मार्ट सिटी के नाम पर रैयतों की जमीन हड़पने की साजिश! – राजेश कच्छप का फूटा गुस्सा
रिपोर्ट:अमित
रांची, झारखंड: राजधानी रांची में बहुचर्चित स्मार्ट सिटी परियोजना अब राजनीतिक और कानूनी विवादों के चक्रव्यूह में उलझती जा रही है। खिजरी से कांग्रेस विधायक राजेश कच्छप ने गुरुवार को नामकुम सीओ कार्यालय में अचानक पहुंचकर जोरदार हंगामा किया। उन्होंने 618 एकड़ भूमि के म्यूटेशन को पूरी तरह अवैध और रैयत विरोधी बताया।

राजेश कच्छप का कहना है कि रांची स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन लिमिटेड (RSCCL) द्वारा जिस जमीन का म्यूटेशन कराया जा रहा है, वह भूमि मूल रूप से एचईसी (HEC) की नहीं थी, बल्कि उसे तत्कालीन बिहार सरकार ने अधिग्रहित किया था। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार, यदि अधिग्रहण के बाद जमीन का उपयोग उस उद्देश्य के लिए नहीं होता, तो वह भूमि रैयतों को वापस लौटाई जानी चाहिए।
नामकुम सीओ कार्यालय में हाई वोल्टेज ड्रामा
गुरुवार को विधायक कच्छप जब नामकुम अंचल कार्यालय पहुंचे, तो उन्होंने वहां मौजूद सीओ कमल किशोर सिंह से पूछा कि किसके आदेश पर म्यूटेशन प्रक्रिया चल रही है। जब सीओ ने मुख्य सचिव का आदेश पत्र दिखाया, तो विधायक ने उस पत्र को यह कहते हुए सीओ पर फेंक दिया कि यह आदेश “असंवैधानिक और गैरकानूनी” है।
उन्होंने कहा,
“बिना रजिस्ट्री के म्यूटेशन करवाना, सुप्रीम कोर्ट और संविधान दोनों की अवमानना है। यह खेल गरीबों और आदिवासियों की जमीन लूटने का है। अधिकारी सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं, जबकि जमीन पर हक रैयतों का है।”

HEC की भूमिका पर भी सवाल
राजेश कच्छप ने सवाल उठाया कि एचईसी के पास यह अधिकार ही नहीं है कि वह स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन को जमीन बेचे। उनका कहना है कि अधिग्रहित जमीन का स्वामित्व एचईसी के पास नहीं, सरकार के पास होता है, और जब अधिग्रहण का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, तो भूमि वापस रैयतों को मिलनी चाहिए थी।

उन्होंने आरोप लगाया कि एचईसी और स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन के बीच सांठगांठ है, जिसके तहत सरकारी आदेशों और कोर्ट के फैसलों की अनदेखी करते हुए यह म्यूटेशन कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि थर्ड पार्टी को अधिग्रहित जमीन नहीं दी जा सकती।
रैयतों की जमीन लूट, गरीबों की पीठ पर स्मार्ट सिटी
विधायक ने कहा कि रैयतों को भूमि का मुआवजा नहीं मिला, न ही उनसे सहमति ली गई। वे आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, जबकि दूसरी ओर करोड़ों की लागत से स्मार्ट सिटी का सपना रचा जा रहा है।
“यह स्मार्ट सिटी नहीं, ‘लैंड लूट सिटी’ है। सरकार को अगर विकास ही करना है, तो आदिवासियों के लिए स्मार्ट विलेज क्यों नहीं बना रही? आप हमारी जमीन, हमारी पहचान और हमारा हक छीनकर विकास का नाम ले रहे हैं – यह बर्दाश्त नहीं होगा।”
“सड़क पर उतरकर करेंगे आंदोलन”
राजेश कच्छप ने चेतावनी दी कि अगर यह म्यूटेशन रोका नहीं गया, तो वे सड़क पर जन आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा कि
“राहुल गांधी का निर्देश साफ है – गरीबों की आवाज बनो। मैं चुप बैठने वाला नहीं हूं। जब तक जमीन रैयतों को वापस नहीं मिलती, तब तक मेरी लड़ाई जारी रहेगी। चाहे इसके लिए मुझे जेल ही क्यों न जाना पड़े।”
प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल
इस मामले पर अब तक प्रशासन की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। नामकुम सीओ केवल यही कह रहे हैं कि उन्हें मुख्य सचिव का आदेश मिला है, जबकि विधायक और कांग्रेस इसे “असली खेल” मान रहे हैं। झारखंड में भूमि अधिकारों को लेकर पहले से ही तनाव रहा है और यह विवाद अब राज्य सरकार के लिए एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, खासकर तब जब विधानसभा चुनाव धीरे-धीरे नजदीक आ रहे हैं।
रांची स्मार्ट सिटी को लेकर यह विवाद अब केवल विकास बनाम विरोध नहीं, बल्कि कानूनी अधिकारों, आदिवासी पहचान और सरकारी नीयत पर सवाल खड़ा करता है। राजेश कच्छप की यह मुखरता आने वाले समय में इस प्रोजेक्ट के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। सरकार के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह इस म्यूटेशन प्रक्रिया की पारदर्शिता और वैधता स्पष्ट करे, नहीं तो यह मामला बड़ा जन आंदोलन और कोर्ट केस बन सकता है।