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सहारा ग्रुप की संपत्तियों को औने-पौने दाम पर बेचने का खुलासा, CID जांच में फर्जी कंपनियों के जरिए घोटाले का पर्दाफाश

रांची/बोकारो/धनबाद: झारखंड में सहारा समूह द्वारा निवेशकों के साथ किए गए कथित धोखाधड़ी का मामला और गहराता जा रहा है। झारखंड सीआईडी (CID) की हालिया जांच में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि सहारा ग्रुप ने राज्य के विभिन्न जिलों में स्थित अपनी सैकड़ों एकड़ अचल संपत्तियों को बेहद कम कीमतों पर बेच दिया। इस पूरे लेन-देन में कई फर्जी कंपनियों और व्यक्तियों के माध्यम से संपत्ति का हस्तांतरण किया गया, जिससे न केवल निवेशकों के साथ विश्वासघात हुआ, बल्कि सरकारी नियमों और सेबी (SEBI) के दिशानिर्देशों की भी खुलकर धज्जियां उड़ाई गईं।

सीआईडी की जांच में यह बात सामने आई है कि बोकारो, धनबाद, बेगूसराय और पटना की अचल संपत्तियों का मूल्यांकन वर्ष 2013 में सेबी द्वारा किया गया था। उस समय इन संपत्तियों की कीमत काफी अधिक आंकी गई थी, लेकिन सहारा समूह द्वारा इन्हें वर्ष 2022 में, यानी लगभग 9 साल बाद, कहीं कम दाम पर बेच दिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि इतने वर्षों में जब रियल एस्टेट की कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी, तब भी इन संपत्तियों को जानबूझकर कम दर पर फर्जी कंपनियों को बेचा गया। इससे यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि यह सब एक सुव्यवस्थित योजना के तहत किया गया था।
सीआईडी इंस्पेक्टर नवल किशोर सिंह द्वारा की गई जांच में यह पाया गया है कि सहारा इंडिया ने इन जमीनों से जो धनराशि अर्जित की, उसे सेबी के पास जमा नहीं कराया गया और न ही निवेशकों को लौटाया गया। बल्कि इस पैसे का उपयोग निजी लाभ और अन्य क्षेत्रों में किया गया। जांच रिपोर्ट के आधार पर सहारा इंडिया के कई शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुशंसा की गई है। इनमें स्वप्ना रॉय, जयब्रतो रॉय, सुशांतो राय, सीमांतो रॉय, ओपी श्रीवास्तव, नीरज कुमार पाल, श्याम वीर सिंह और तापस राय समेत कई निदेशक और अज्ञात व्यक्तियों के नाम शामिल हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है। हाल ही में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में उन्होंने सहारा समूह के खिलाफ आवाज उठाई और झारखंड के निवेशकों को उनके पैसों की वापसी सुनिश्चित करने की मांग की। मुख्यमंत्री ने बिहार के प्रतिनिधियों को भी इस मामले की जानकारी दी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह घोटाला केवल झारखंड तक सीमित नहीं है बल्कि इसके तार अन्य राज्यों से भी जुड़े हो सकते हैं।
इस पूरे घोटाले में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सहारा ग्रुप ने अपनी विभिन्न शाखाओं से पैसों का हस्तांतरण कोलकाता, पटना, गुवाहाटी, वाराणसी और दिल्ली जैसी जगहों पर किया। सीआईडी को सहारा अधिकारी शैलेंद्र शुक्ला से पूछताछ के दौरान यह जानकारी प्राप्त हुई कि यह सारा लेन-देन रांची और बोकारो जोन से किया गया, जिसे नीरज कुमार पाल और मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी एसबी सिंह के निर्देश पर अंजाम दिया गया।

बोकारो की संपत्तियों की बात करें तो सेबी की मास्टर लिस्ट के अनुसार बोकारो जिले के चास अंचल क्षेत्र में 68.14 एकड़ जमीन का 2013 में मूल्यांकन 61.33 करोड़ रुपये किया गया था। इतनी मूल्यवान जमीन को जिस कीमत पर 2022 में बेचा गया, वह न केवल आर्थिक अनियमितता को दर्शाता है, बल्कि इससे यह भी जाहिर होता है कि सहारा ग्रुप ने अपने निवेशकों के हितों की कोई परवाह नहीं की।

इसी प्रकार धनबाद के गोविंदपुर अंचल के रेगुनी मौजा में भी सहारा ग्रुप की जमीन की बिक्री को लेकर जांच चल रही है। यहां की जमीन पर अब एक निजी अस्पताल “असर्फी अस्पताल” का निर्माण हो रहा है, जिससे यह संकेत मिल रहा है कि जमीन का मालिकाना हक पहले ही किसी अन्य संस्था को सौंपा जा चुका है। इस मामले में सीआईडी ने संबंधित अंचल अधिकारी और बाघमारा थाना प्रभारी को पत्र लिखकर सहारा से जुड़ी सभी कंपनियों का ब्योरा उपलब्ध कराने को कहा है।
झारखंड सीआईडी की इस जांच से सहारा ग्रुप के खिलाफ पहले से चल रही कानूनी लड़ाई को और मजबूती मिल सकती है। यह मामला अब केवल निवेशकों के आर्थिक नुकसान का नहीं, बल्कि सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही का भी प्रतीक बन गया है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या सेबी, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य एजेंसियां इस पर क्या रुख अपनाती हैं और सहारा समूह के शीर्ष अधिकारियों पर क्या कानूनी कार्रवाई होती है।
रांची से अमित की रिपोर्ट…..