गर्मी में उग रहा “दूधिया सोना”: गोड्डा की महिलाएं मशरूम उत्पादन से बन रहीं आत्मनिर्भर, अदाणी फाउंडेशन दे रहा सहारा

45 डिग्री तापमान में भी चल रहा उत्पादन, कम लागत में ज्यादा मुनाफा
गोड्डा,17 मई 2025: जहां भीषण गर्मी में खेती करना मुश्किल हो जाता है, वहां गोड्डा की ग्रामीण महिलाएं उम्मीद की एक नई फसल उगा रही हैं — मिल्की मशरूम, जिसे ग्रामीण अब “दूधिया सोना” कहने लगे हैं। 40-45 डिग्री तापमान में भी उगने वाले इस खास किस्म के मशरूम ने न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक तस्वीर बदली है, बल्कि आत्मनिर्भरता की ओर एक ठोस कदम भी बढ़ाया है।

इस बदलाव के पीछे अहम भूमिका निभा रहा है अदाणी फाउंडेशन, जो गोड्डा स्थित अदाणी पावर प्लांट के आसपास के गांवों — मोतिया, डुमरिया, पटवा, रंगनिया, बक्सरा, नयाबाद, गंगटा आदि में महिलाओं को मुफ्त प्रशिक्षण, बीज, फॉर्मलीन, पॉलिथीन बैग और अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध करा रहा है।

मशरूम उत्पादन: गर्मी में खेती का नया विकल्प

मिल्की मशरूम की सबसे बड़ी खासियत है कि यह 35-40 डिग्री तापमान और 90% नमी में भी बेहतर उत्पादन देता है। महज 20-25 रुपये प्रति किलो लागत में तैयार यह मशरूम बाजार में 200 से 400 रुपये किलो तक बिक रहा है — यानी 10 गुना तक मुनाफा संभव है।
बिंदु देवी की कहानी: घर से खेत तक का सफर


पटवा गांव की बिंदु देवी, जो पहले सिर्फ घरेलू काम तक सीमित थीं, आज हर महीने 8-10 हजार रुपये तक की आय कर रही हैं। उन्होंने कहा:
“पहले लगता था खेती सिर्फ पुरुषों का काम है, लेकिन अब मशरूम उत्पादन से मेरी खुद की पहचान बनी है।” – बिंदु देवी
कैसे होता है उत्पादन?
•महिलाओं द्वारा सबसे पहले भूसे को दवाओं से उपचारित किया जाता है, फिर उसमें मशरूम का बीज मिलाकर पॉलिथीन बैग में भरकर अंधेरे कमरे में रखा जाता है, 20 दिन बाद मिट्टी-खाद की केसिंग होती है, और 15 दिनों में मशरूम निकलने लगते हैं।
पोषण और स्वास्थ्य में भी उपयोगी
मिल्की मशरूम सिर्फ स्वाद और मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। डॉक्टर भी इसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों में उपयोगी मानते हैं।
सशक्त हो रही हैं महिलाएं, बदल रहा है गांव
200 से अधिक महिलाएं आज न सिर्फ खुद मशरूम उगा रही हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रशिक्षण देकर उन्हें भी सशक्त बना रही हैं। गांव की सामाजिक और आर्थिक तस्वीर बदल रही है। अदाणी फाउंडेशन की यह पहल महिला सशक्तिकरण और टिकाऊ आजीविका का एक आदर्श मॉडल बन चुकी है।