दिशोम गुरु शिबू सोरेन पंचतत्व में विलीन: अंतिम दर्शन को उमड़ा जनसैलाब, नेमरा में हुआ पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार

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रामगढ़/नेमरा | अमित/मुकेश सिंह
झारखंड के आदिवासी चेतना के पुरोधा, पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसद और झारखंड आंदोलन के प्रणेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी का पार्थिव शरीर आज पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गांव नेमरा (प्रखंड – गोला, जिला – रामगढ़) में पंचतत्व में विलीन हो गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पारंपरिक रीति-रिवाजों और जनजातीय संस्कृति की मान्यताओं के साथ पिता को मुखाग्नि दी। इस विदाई में न केवल आंखें नम थीं, बल्कि पूरा झारखंड शोक की स्याही में डूबा हुआ प्रतीत हुआ।

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हजारों की संख्या में उमड़ा जनसैलाब: ‘अंतिम जोहार’ के लिए जुटे आम और खास
शिबू सोरेन जी की अंतिम यात्रा केवल एक व्यक्ति की विदाई नहीं थी, बल्कि यह झारखंड की आत्मा, संघर्ष, स्वाभिमान और संकल्प की विदाई थी। रांची से उनके पार्थिव शरीर को रामगढ़ लाए जाने के बाद जिस तरह जन सैलाब उमड़ा, वह यह दर्शाता है कि ‘दिशोम गुरु’ केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि लाखों दिलों की धड़कन थे।

उनके अंतिम दर्शन के लिए नेमरा गांव में हजारों की संख्या में ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता, पार्टी कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि, और सामान्य नागरिक उपस्थित हुए। भीड़ में महिलाएं, बुजुर्ग, युवा—हर वर्ग के लोग नम आंखों से ‘गुरुजी’ को अंतिम विदाई देने पहुंचे थे। लोग “शिबू सोरेन अमर रहें” और “दिशोम गुरु को अंतिम जोहार” के नारे लगा रहे थे।

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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की आंखों में पिता की यादें, कंधों पर जिम्मेदारी का भार
जब हेमंत सोरेन ने अपने पिता को मुखाग्नि दी, तो वह क्षण केवल एक बेटे का अपने पिता को विदा करना नहीं था, बल्कि एक विचारधारा, एक आंदोलन और एक युग के प्रतीक को अंतिम प्रणाम था। मुख्यमंत्री भावुक थे, परंतु संयमित। उन्होंने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया।

मुखाग्नि के साथ युग का अवसान
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने पिता को अंतिम विदाई देते हुए कहा कि,

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“पिता केवल एक रिश्ते का नाम नहीं था, वे मेरे लिए पूरी विचारधारा थे। मैं उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए संकल्पित हूं।”

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नेमरा गांव में पसरा मातम, घरों में नहीं जले चूल्हे, हर आंख नम
दिशोम गुरु के निधन की खबर जब 30 जुलाई की रात आई, तभी से नेमरा गांव शोक की लहर में डूब गया था। सड़कों पर सन्नाटा, घरों में मातम, और हर कोने से आ रही रुलाई — यह सब दर्शा रहा था कि यह केवल परिवार का नहीं, पूरे समाज का नुकसान है। जब उनका पार्थिव शरीर गांव पहुंचा तो हर कोई बेसुध होकर रो पड़ा।

नेता से लेकर जनता तक — अंतिम विदाई में उमड़े भाव
लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे , तेजस्वी यादव , पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास , विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो, केंद्रीय मंत्रीगण, राज्य सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक, प्रमुख जनप्रतिनिधियों सहित प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित थे। गृह मंत्री अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु समेत देशभर से शोक संदेश पहुंचे।

राष्ट्रपति ने पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण कर अंतिम श्रद्धांजलि दी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए शोक संतप्त परिवार को ढांढस बंधाया।

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शिबू सोरेन: संघर्ष, सेवा और स्वाभिमान का प्रतीक
शिबू सोरेन जी ने न केवल झारखंड आंदोलन को धार दी, बल्कि आदिवासियों के हक और सम्मान के लिए एक पूरी जिंदगी समर्पित की। झामुमो की नींव उन्हीं की दृष्टि थी और उन्होंने “पढ़ाई, लड़ाई और कमाई” के आदिवासी नारे को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे, अनेक बार सांसद चुने गए और केंद्र सरकार में मंत्री पद की भी जिम्मेदारी संभाली। लेकिन राजनीति उनके लिए सत्ता नहीं, सेवा का माध्यम थी।

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झामुमो और आदिवासी समाज की ओर से श्रद्धांजलि
झामुमो महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने कहा कि “दिशोम गुरु जी केवल नेता नहीं, आदिवासी अस्मिता के प्रतीक थे। उनकी सादगी, सिद्धांत और संघर्ष की भावना आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक है।”

वहीं, पार्टी प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, “हमारा गुरु शारीरिक रूप से भले हमारे बीच नहीं रहे, पर उनकी विचारधारा और संघर्षशील चेतना हमारे रक्त में है।”

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राजकीय सम्मान से विदाई: पुलिस टुकड़ी ने दी अंतिम सलामी
अंतिम संस्कार से पूर्व झारखंड पुलिस की टुकड़ी द्वारा राजकीय सम्मान की सलामी दी गई। पुष्पचक्र अर्पण का क्रम चला और पूरे सम्मान के साथ दिशोम गुरु को विदा किया गया। देश के इतिहास में यह एक अद्वितीय क्षण था।

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“दिशोम गुरु अमर रहें”: झारखंड की माटी ने आज अपने सबसे वीर पुत्र को विदा किया
दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा, संघर्ष की मशाल और आदिवासी स्वाभिमान की चिंगारी हमेशा जिंदा रहेगी। उनके अधूरे सपनों को पूरा करना ही अब झामुमो कार्यकर्ताओं और झारखंड के युवाओं का कर्तव्य है।

उनके जीवन का एक-एक पल प्रेरणा है, और उनकी अंतिम यात्रा एक युग का अंत।

ओम शांति

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