दिवंगत दिशोम गुरु शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर रांची पहुंचा, अंतिम दर्शन को उमड़ा जनसैलाब

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रांची एयरपोर्ट पर उमड़ा जनसैलाब, दिशोम गुरु को अंतिम बार देखने उमड़े श्रद्धालु

Maa RamPyari Hospital

रांची : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड आंदोलन के पुरोधा और राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पार्थिव शरीर को विशेष विमान से आज रांची एयरपोर्ट लाया गया। एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्वयं मौजूद रहे और पिता के पार्थिव शरीर को श्रद्धासुमन अर्पित कर भावुक हो उठे

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एयरपोर्ट पर मीडिया से बातचीत में कहा:

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“बाबा ने झारखंड को पहचान दी। आज पूरा झारखंड एक पिता तुल्य नेता को खोने का शोक मना रहा है। यह निजी नहीं, पूरे राज्य का दुख है।”

एयरपोर्ट पर मौजूद हज़ारों लोगों ने दिशोम गुरु को अंतिम दर्शन देने के लिए भीड़ लगा दी। जैसे ही पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटे काफिले के साथ एयरपोर्ट से मोरहाबादी स्थित उनके आवास के लिए रवाना हुआ, पूरे शहर में ग़म और सम्मान का माहौल व्याप्त हो गया।

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राजकीय सम्मान के साथ अंतिम यात्रा की तैयारी
शिबू सोरेन के पार्थिव शरीर को मोरहाबादी स्थित उनके आवास में अंतिम दर्शन के लिए आमजन के लिए रखा जाएगा। राज्य सरकार की ओर से तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है, और सभी सरकारी भवनों पर झंडे आधे झुके हुए हैं।मुख्यमंत्री सचिवालय से मिली जानकारी के अनुसार, अंतिम संस्कार कार्यक्रम कल उनके पैतृक गांव नेमरा, रामगढ़ में आयोजित किया जाएगा।

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सर्वजन के थे दिशोम गुरु दिवंगत शिबू सोरेन…
बिरसा मुंडा हवाई अड्डे से मोरहाबादी मैदान के रास्ते में अंतिम दर्शन कर दिशोम गुरु को नमन करते झारखण्डवासी।

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राजनीति से जन आंदोलन तक – दिशोम गुरु की संघर्ष गाथा
शिबू सोरेन का जीवन झारखंड की अस्मिता, अधिकारों और संघर्ष की कहानी है। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना कर न केवल एक राजनीतिक दल खड़ा किया, बल्कि आदिवासी समाज की आवाज को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया। उनके निधन से झारखंड ही नहीं, देश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया है।

प्रदेशभर में शोक की लहर
झारखंड के सभी जिलों से लगातार श्रद्धांजलि संदेश आ रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस, झामुमो, राजद, आजसू समेत सभी दलों के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। धार्मिक संगठनों, छात्र संगठनों, आदिवासी महासभा और समाज के हर तबके से लोगों ने उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने की इच्छा जताई है।झारखंड ने एक युगद्रष्टा नेता को खोया है। राज्य की राजनीति, सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक अस्मिता में उनकी भूमिका अमिट रहेगी। दिशोम गुरु अब हमारे बीच भौतिक रूप से नहीं हैं, लेकिन उनका विचार और संघर्ष हमेशा जीवित रहेगा।

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