हजारीबाग जेल में आत्मसमर्पित नक्सली बंदी ने की आत्महत्या, सुरक्षा व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल

आत्मसमर्पित नक्सली आत्महत्या
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मृतक पर दर्ज थे 8 आपराधिक मामले, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी गई रिपोर्ट

हजारीबाग, 31 मई 25: झारखंड के हजारीबाग जेल से एक संवेदनशील और चौंकाने वाली घटना सामने आई है। आत्मसमर्पित नक्सली बंदी ने आज सुबह डी-वार्ड में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, जिससे जेल प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

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बंदी की पहचान और पृष्ठभूमि

मृतक बंदी की पहचान छोटा श्यामलाल देहरी उर्फ संतु देहरी उर्फ सोमलाल देहरी (उम्र लगभग 30 वर्ष) के रूप में की गई है। वह दुमका जिले के काठीकुंड थाना क्षेत्र के माझंला सरूआपानी टोला तुरका पहाड़ी का निवासी था।
जानकारी के अनुसार, वह नक्सली गतिविधियों में लिप्त था और आत्मसमर्पण के बाद जेल में विचाराधीन बंदी के रूप में बंद था। उस पर कुल 8 गंभीर मामले लंबित थे। 9 फरवरी 2021 को उसे दुमका केंद्रीय कारा से स्थानांतरित कर हजारीबाग कारा में रखा गया था।

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घटना का समय और परिस्थितियां

आज अहले सुबह खुले नंबर के समय, जब गिनती मिलान की प्रक्रिया चल रही थी, तभी डी-वार्ड में बंद इस विचाराधीन नक्सली ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। घटना के तुरंत बाद जेल प्रशासन में हड़कंप मच गया। बंदी को तत्काल जेल चिकित्सक द्वारा चेक किया गया, फिर शेख भिखारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, हजारीबाग ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित किया गया।

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मानवाधिकार आयोग को दी गई जानकारी

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घटना की संवेदनशीलता को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य संबंधित निगरानी एजेंसियों को इस संबंध में जानकारी भेज दी गई है। इस आत्महत्या की विधिवत जांच प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, ताकि पूरे घटनाक्रम की पारदर्शी पड़ताल की जा सके।

जेल की सुरक्षा पर उठे सवाल

यह घटना उस वक्त और भी चिंताजनक हो जाती है जब कुछ ही दिन पूर्व हजारीबाग के लोकनायक जयप्रकाश केंद्रीय कारा में भी एक सजायाफ्ता कैदी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। लगातार आत्महत्याओं की घटनाएं यह सवाल खड़ा कर रही हैं कि:

•क्या जेल प्रशासन की निगरानी प्रणाली में कोई बड़ी खामी है?

•कैसे उच्च सुरक्षा वाले जेल परिसर में फांसी लगाने जैसे कृत्य को अंजाम दे दिया गया?

•क्या बंदियों की मानसिक स्थिति और सुरक्षा का समुचित आकलन नहीं किया जा रहा?

विश्लेषण और चिंताएं

आत्मसमर्पित नक्सली अक्सर गहन मानसिक दबाव और सामाजिक कटाव के दौर से गुजरते हैं। ऐसे में, जेल प्रशासन की जिम्मेदारी होती है कि उन्हें परामर्श एवं मानसिक स्वास्थ्य सहयोग उपलब्ध कराया जाए।सुरक्षित निगरानी में रखा जाए।सुधारात्मक गतिविधियों से जोड़ा जाए।

लगातार हो रही ऐसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि कहीं न कहीं कारा प्रबंधन में मानव संसाधन और संवेदनशीलता की कमी है।

Munadi Live का सवाल ?

एक ओर राज्य सरकार आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति के तहत नक्सल प्रभावित युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर जेल के भीतर हो रही ऐसी घटनाएं उन प्रयासों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही हैं।

जरूरत है एक गहन ऑडिट और सुरक्षा मूल्यांकन की, ताकि न केवल ऐसी घटनाओं को रोका जा सके बल्कि आत्मसमर्पित युवाओं में विश्वास भी बहाल रखा जा सके।

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