629 साल पुरानी रथ मेला परंपरा को ममता सरकार ने रोका, हिंदू समुदाय में गहरी नाराजगी

रथ मेला 2025
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मालदा, पश्चिम बंगाल,23, जून 2025: पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के जलालपुर कस्बे में आयोजित होने वाले 629 साल पुराने पारंपरिक रथ मेला को इस बार राज्य सरकार द्वारा अनुमति नहीं दिए जाने से स्थानीय हिंदू समुदाय में भारी नाराजगी है। यह मेला श्री महाप्रभु मंदिर के पास हर वर्ष धूमधाम से आयोजित होता है, जिसमें रथ यात्रा एक प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान होता है।

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रथ यात्रा की अनुमति, मेला पर प्रतिबंध

इस वर्ष प्रशासन ने केवल रथ यात्रा को मंजूरी दी है, जबकि मेले के आयोजन पर रोक लगा दी गई है। स्थानीय पुलिस प्रशासन ने तर्क दिया है कि बीते कुछ वर्षों में मेले के दौरान असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसक घटनाएं, यहां तक कि हत्या जैसे अपराध भी सामने आए थे।
इन्हीं तथ्यों के आधार पर कानून-व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है।

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हिंदू समुदाय की प्रतिक्रिया

मेले पर प्रतिबंध से स्थानीय हिंदू समाज में गहरा आक्रोश देखा जा रहा है। उनका कहना है कि यह मेला सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव का भी माध्यम रहा है, जो सदियों पुरानी परंपरा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि

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“629 वर्षों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब मेला आयोजित नहीं किया जा रहा। प्रशासन चाहता तो सुरक्षा के इंतजाम करके मेला सुचारु रूप से चला सकता था, लेकिन रोकना आसान रास्ता चुना गया।”

प्रशासन की दलील बनाम परंपरा का सवाल

प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह निर्णय टीएमसी सरकार के निर्देशों के आलोक में लिया गया है और यह पूरी तरह कानून-व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से है।
लेकिन धार्मिक संगठनों और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का तर्क है कि यदि ईद, मुहर्रम, क्रिसमस जैसे आयोजनों में राज्य पुख्ता व्यवस्था कर सकता है, तो हिंदू पर्वों के लिए यह तत्परता क्यों नहीं?

राजनीतिक प्रतिक्रिया भी संभव

यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक तूल भी पकड़ सकता है। भाजपा, विहिप और अन्य संगठनों द्वारा इसे “हिंदू विरोधी मानसिकता” करार दिया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि

“बंगाल में पहले से ही धार्मिक ध्रुवीकरण के कई मुद्दे उफान पर हैं, ऐसे में यह निर्णय विपक्ष को सरकार पर निशाना साधने का और मौका देगा।”

मेला: आस्था और संस्कृति का संगम

इस मेले में हर साल राज्यभर से हजारों श्रद्धालु और पर्यटक जुटते हैं। हस्तशिल्प, लोकनृत्य, लोकगीत, भजन-कीर्तन, और सांस्कृतिक प्रदर्शनों के माध्यम से यह मेला एक बड़े सामाजिक और आर्थिक गतिविधि का केंद्र बन जाता है।

परंपराएं केवल धार्मिक आस्था नहीं, सांस्कृतिक आत्मा होती हैं। प्रशासन को सुरक्षा के साथ परंपराओं को निभाने का रास्ता निकालना चाहिए, न कि उन्हें बंद करने का। अगर असामाजिक तत्व समस्या हैं तो उन्हें दंडित करें, परंपरा को नहीं।”

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