करमा पर्व : झारखंड की अस्मिता और परंपरा का प्रतीक

Karma Parv: A confluence of culture and brotherhood Karma Parv: A confluence of culture and brotherhood

मुनादी Live विशेष : झारखंड की पहचान सिर्फ उसकी प्राकृतिक खूबसूरती और खनिज संपदा से नहीं है, बल्कि यहां की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और परंपराएं भी इस धरती को विशेष बनाती हैं। इन्हीं परंपराओं में एक है करमा पर्व, जिसे झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्यप्रदेश के आदिवासी समुदाय बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह पर्व हर साल भादो महीने में एकादशी के दिन आता है और भाई-बहन के अटूट रिश्ते, सामूहिकता और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है।

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करमा पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
करमा पर्व का नामकरण ‘करम वृक्ष’ के आधार पर हुआ है। मान्यता है कि यह वृक्ष सुख, शांति, उर्वरता और भाईचारे का प्रतीक है। पूजा के दौरान करम वृक्ष की डाल को लाकर उसे गांव या घर के आंगन में स्थापित किया जाता है। महिलाएं और युवतियां उपवास रखकर करमा माता की आराधना करती हैं। रातभर लोकगीत और पारंपरिक नृत्य के बीच सामूहिक उत्सव का माहौल रहता है।

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यह पर्व सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि यह सामूहिकता और सामाजिक एकजुटता का संदेश भी देता है। गांव के लोग एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं, जहां अमीर-गरीब, जाति या वर्ग का कोई भेदभाव नहीं रहता।

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भाई-बहन के रिश्ते का पर्व
करमा पर्व को आदिवासी समाज में भाई-बहन के रिश्ते का पर्व कहा जाता है। बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। भाई भी इस दिन अपनी बहनों को उपहार देकर उनके प्रति सम्मान और स्नेह व्यक्त करते हैं। यह त्योहार रक्षाबंधन की तरह ही रिश्तों की गहराई को दर्शाता है, लेकिन इसमें सामूहिकता और प्रकृति पूजा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

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परंपरागत गीत और नृत्य
करमा की रात को गांव के लोग सामूहिक रूप से झूमर, डांस और पारंपरिक गीत गाते हैं। ढोल, मांदर और नगाड़े की थाप पर पुरुष और महिलाएं एक साथ नृत्य करते हैं। इन गीतों में जीवन, प्रेम, भाईचारा, प्रकृति और संघर्ष का जिक्र होता है। यह लोकसंगीत आदिवासी जीवन की आत्मा को सामने लाता है।

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आधुनिक दौर में करमा पर्व
तेजी से बदलते समय में भी करमा पर्व की लोकप्रियता और प्रासंगिकता बरकरार है। शहरी क्षेत्रों में भी आदिवासी समाज के लोग इसे सामूहिक रूप से मनाते हैं। झारखंड की राजधानी रांची से लेकर बोकारो, धनबाद और जमशेदपुर जैसे शहरों में सांस्कृतिक समितियों द्वारा भव्य आयोजन किए जाते हैं। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में भी करमा पर्व पर विशेष कार्यक्रम होते हैं, जिससे नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।

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राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण
करमा पर्व अब केवल सांस्कृतिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक रूप से भी इसका महत्व बढ़ गया है। राज्य की सत्ता में बैठी सरकारें इस पर्व पर महिलाओं और ग्रामीण समुदाय को विशेष योजनाओं और सौगातों से जोड़ती हैं। जैसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार ने इस बार मंईयां सम्मान योजना की राशि करमा पर्व पर महिलाओं के खाते में भेजकर राजनीतिक संदेश भी दिया।

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वहीं विपक्ष भी इस मौके पर ग्रामीण इलाकों और आदिवासी समुदाय से जुड़ने की कोशिश करता है। इस तरह करमा पर्व धीरे-धीरे झारखंड की राजनीतिक-सामाजिक धारा को भी प्रभावित करने लगा है।

सामूहिकता और भाईचारे का संदेश
करमा पर्व यह सिखाता है कि समाज में अगर एकजुटता और आपसी भाईचारा बना रहे तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती। सामूहिक नृत्य, गीत और पूजा के जरिए यह पर्व आदिवासी जीवन में समानता और साझेदारी का भाव पैदा करता है।

करमा पर्व झारखंड की पहचान और गर्व है। यह न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि संस्कृति, भाईचारे, प्रकृति और सामूहिकता का जीवंत प्रतीक है। आधुनिकता की आंधी में भी इस पर्व की जड़ें मजबूत हैं और यह आने वाली पीढ़ियों को अपनी मिट्टी और परंपराओं से जोड़ता रहेगा।

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