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आदिवासी समाज के हित में बड़ा आयोजन: 14 सितंबर को जमशेदपुर में ‘आदिवासी महा दरबार’

पूर्व सीएम चंपाई सोरेन की अगुवाई में पेसा कानून, CNT-SPT एक्ट और विस्थापन पर होगा विमर्श
जमशेदपुर: झारखंड की राजनीति और आदिवासी समाज के लिए 14 सितंबर 2024 का दिन ऐतिहासिक हो सकता है। इस दिन जमशेदपुर के प्रतिष्ठित एक्सएलआरआई ऑडिटोरियम में ‘आदिवासी महा दरबार’ का आयोजन होगा, जिसका नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन करेंगे। यह आयोजन न केवल आदिवासी समाज की एकजुटता को मज़बूत करने का प्रयास है, बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों, परंपराओं और सामाजिक सरोकारों पर गहन विमर्श का मंच भी बनेगा।

आयोजन की तैयारियां तेज़
इस विशेष आयोजन को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। आयोजकों की ओर से निमंत्रण पत्र वितरित किए जा चुके हैं और विभिन्न जिलों के आदिवासी समुदायों को इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया है। स्थानीय संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अकादमिक और कानूनी विशेषज्ञों को भी इसमें बुलाया गया है, ताकि आदिवासी समाज से जुड़े मुद्दों पर ठोस समाधान निकल सके।
चंपाई सोरेन ने कहा, “यह महा दरबार आदिवासी हितों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित होगा। पेसा कानून, सीएनटी-एसपीटी एक्ट, भूमि अधिग्रहण, विस्थापन और आदिवासी सामाजिक संरचना जैसे विषयों पर गहन मंथन होगा।”
पेसा कानून और CNT-SPT एक्ट पर फोकस
आदिवासी महा दरबार के मुख्य एजेंडे में पेसा कानून (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act) और CNT-SPT एक्ट (छोटानागपुर- संथाल परगना टेनेंसी एक्ट) शामिल हैं। ये दोनों कानून आदिवासी समुदाय की ज़मीन, जंगल और जल पर उनके पारंपरिक अधिकारों को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इन कानूनों के क्रियान्वयन को लेकर विवाद बढ़े हैं। चंपाई सोरेन और उनके सहयोगियों का कहना है कि महा दरबार में इन कानूनों की मौजूदा स्थिति पर चर्चा कर समुदाय को जागरूक किया जाएगा।
भूमि अधिग्रहण और विस्थापन भी बड़ा मुद्दा
झारखंड में विकास परियोजनाओं के कारण भूमि अधिग्रहण और विस्थापन लंबे समय से आदिवासी समाज के लिए गंभीर मुद्दे रहे हैं। महा दरबार में यह विषय भी चर्चा के केंद्र में रहेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, अब समय आ गया है कि सरकार, प्रशासन और आदिवासी नेतृत्व मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान ढूंढें।

आदिवासी समाज की एकजुटता
इस आयोजन का दूसरा बड़ा उद्देश्य आदिवासी समाज को एक मंच पर लाना है। अलग-अलग जिलों के प्रतिनिधियों, पारंपरिक मुखियाओं और सामाजिक संगठनों को आमंत्रित कर इस महा दरबार को आदिवासी स्वाभिमान और एकजुटता का प्रतीक बनाने की योजना है। आयोजकों का मानना है कि अगर समुदाय संगठित और जागरूक रहेगा तो उसकी आवाज़ राज्य और केंद्र सरकार तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचेगी।

राजनीतिक महत्व
यह आयोजन केवल सामाजिक या सांस्कृतिक नहीं बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन झारखंड की राजनीति में आदिवासी मुद्दों को केंद्र में रखने के लिए जाने जाते हैं। इस आयोजन के ज़रिए वे एक बार फिर आदिवासी समाज में अपनी पकड़ को मज़बूत करने की कोशिश कर सकते हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस महा दरबार के माध्यम से राज्य के राजनीतिक समीकरणों पर भी असर पड़ सकता है।
14 सितंबर को होने वाला ‘आदिवासी महा दरबार’ आदिवासी समाज के हितों, संवैधानिक अधिकारों और पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। इस आयोजन से आदिवासी समुदाय की एकजुटता और जागरूकता दोनों बढ़ने की संभावना है। साथ ही, यह आयोजन राज्य सरकार और नीति निर्माताओं के लिए भी एक संकेत होगा कि आदिवासी समाज अपने अधिकारों को लेकर गंभीर और संगठित है।