आजसू को करारा झटका: केंद्रीय महासचिव विजय साहू ने दिया इस्तीफा, जयराम महतो के साथ जुड़ रहे युवा चेहरे

24 साल की निष्ठा के बाद आजसू को अलविदा कहने वाले विजय साहू ने खोले संगठन के अंदरूनी हालात के राज, मांडू-बड़कागांव में तेजी से बदल रहा है सियासी समीकरण
रांची/रामगढ़: झारखंड की सियासत में इस वक्त जिस पार्टी पर सबसे ज्यादा राजनीतिक दबाव है, वह है आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन)। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पार्टी नेतृत्व भले ही “मिलन समारोह” कर नई ताकत जुटाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन जमीनी हालात पार्टी की राजनीतिक ज़मीन खिसकने की ओर इशारा कर रहे हैं।

ताजा घटनाक्रम में पार्टी को बड़ा झटका उस वक्त लगा, जब केंद्रीय महासचिव और तेजतर्रार नेता विजय कुमार साहू ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। यह इस्तीफा सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पार्टी के आंतरिक असंतोष, नेतृत्व के प्रति अविश्वास और संगठन में पारदर्शिता के अभाव की ओर इशारा करता है।
24 साल की निष्ठा और फिर इस्तीफा
विजय साहू ने अपने फेसबुक अकाउंट से अपने इस्तीफे की प्रति साझा करते हुए लिखा,
“24 वर्षों की निष्ठा और सेवा के बाद यह निर्णय लेना आसान नहीं था। जिस सोच और विजन के साथ संगठन को खड़ा किया, वह अब धूमिल हो रहा है। कार्यकर्ताओं की आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है और युवाओं को सिर्फ उपयोग कर छोड़ देने की प्रवृत्ति हावी हो चुकी है।”
विजय साहू पूर्व में रामगढ़ जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं और मांडू, बड़कागांव व रामगढ़ क्षेत्र में पार्टी के मजबूत स्तंभ माने जाते थे। उनका इस्तीफा आने वाले समय में पार्टी को सांगठनिक रूप से और कमजोर कर सकता है।

युवाओं का झुकाव जयराम महतो की ओर
इसी दिन मांडू से जुझारू युवा नेता पवन साहू और सुरेंद्र महतो समेत कई युवा कार्यकर्ताओं ने झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) का दामन थाम लिया। कार्यक्रम के दौरान जयराम महतो ने उनका पार्टी में स्वागत करते हुए कहा, झारखंड के सवालों को लेकर हमारी लड़ाई असली है। ये युवा हमारे मिशन में नई ऊर्जा भरेंगे।


“आजसू पार्टी में युवाओं के लिए कोई राजनीतिक भविष्य नहीं बचा है। सिर्फ टिकट और पद के लिए चाटुकारिता को बढ़ावा मिला है। जन सरोकार गायब हो चुके हैं।” : पवन साहू
इस्तीफे की राजनीति बनाम “मिलन समारोह”
आजसू के सामने इस वक्त दोहरी चुनौती है – एक तरफ पुराने निष्ठावान नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ पार्टी संगठन में अब “मिलन समारोह” के ज़रिए नई जान फूंकने की कोशिश की जा रही है। लेकिन जानकार मानते हैं कि यह फार्मूला आज की परिस्थितियों में शायद ही कारगर हो। पार्टी जिस तरीके से चुनाव में टिकट वितरण, रणनीति और जनसंपर्क अभियान में विफल रही, उसका असर अब संगठनात्मक विघटन के रूप में दिख रहा है।
जयराम महतो का बढ़ता प्रभाव: राजनीतिक संकेत और असर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जयराम महतो जिस तरह मांडू, बड़कागांव, रामगढ़, गोमिया टुंडी जैसे क्षेत्रों में लगातार बड़ी जनसभाएं कर रहे हैं, वहां आजसू की परंपरागत पकड़ कमजोर होती जा रही है। विस्थापन, भूमि अधिग्रहण और स्थानीय मुद्दों को लेकर उनकी लड़ाई ने उन्हें झारखंड की जनता के बीच एक सशक्त विकल्प के रूप में खड़ा कर दिया है। उनकी बढ़ती लोकप्रियता और लगातार मिल रहे युवा समर्थन ने आजसू की रणनीतिक टीम की नींद उड़ा दी है। 2029 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से नए राजनीतिक गठजोड़ बन रहे हैं, उसमें जयराम महतो का जनाधार पार्टी के लिए खतरे की घंटी बन सकता है। विशेष रूप से ओबीसी समुदाय के बीच विजय साहू और पवन साहू जैसे नेताओं की लोकप्रियता से पार्टी को बड़ा झटका लग सकता है।

जनता की बेचैनी, युवा नेताओं की बगावत
बड़कागांव और मांडू क्षेत्र की जनता में चुनाव के महज 6-7 महीने बाद ही निराशा देखने को मिल रही है। वादे अधूरे हैं, मुद्दों से दूरी बनी हुई है और नेता जमीनी संपर्क से दूर हैं। इस परिस्थिति में जनता को नया विकल्प चाहिए, और जयराम महतो जैसे जुझारू नेता उस विकल्प के तौर पर उभरते दिख रहे हैं।
आजसू पार्टी के सामने अब नेतृत्व संकट के साथ-साथ जनाधार की रक्षा की बड़ी चुनौती है। विजय साहू और पवन साहू जैसे नेताओं का पार्टी छोड़ना महज नाम नहीं, बल्कि एक चेतावनी है – कि अगर संगठन अपनी सोच, कार्यशैली और प्राथमिकताओं में बदलाव नहीं लाता, तो आने वाले वर्षों में वह पूरी तरह अप्रासंगिक हो सकता है।
आजसू पार्टी को अब सिर्फ नए चेहरों की तलाश नहीं, बल्कि संगठन के भीतर से उठ रही आवाजों को सुनने और बदलाव की जरूरत है। विजय साहू जैसे वरिष्ठ नेताओं का जाना और युवाओं का विरोधी खेमे में जाना यह साबित करता है कि पार्टी की जड़ें हिल चुकी हैं। अब देखना यह होगा कि पार्टी नेतृत्व इस चुनौती को कैसे लेता है – मंथन करेगा या फिर आत्ममुग्धता में डूबा रहेगा?
रिपोर्ट : अमित