नहाय-खाय से शुरू हुआ श्रद्धा, संयम और त्याग का महापर्व छठ : श्रद्धालुओं में आस्था का सैलाब
रांची: आज से पूरे धूमधाम और श्रद्धा के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व, जिसमें आस्था का महासागर उमड़ पड़ा है। विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाले इस पर्व में भक्तजन सूर्य देव और छठी मैया की उपासना करते हुए चार दिवसीय कठिन व्रत का पालन करते हैं। छठ महापर्व का महत्व न केवल धार्मिक है बल्कि यह पर्व सामाजिक एकता, पर्यावरण प्रेम और अनुशासन का भी प्रतीक है।
छठ के चार दिवसीय महोत्सव की मुख्य झलकियां:
- पहला दिन (5 नवंबर) – नहाय-खाय:
छठ पूजा का प्रारंभ नहाय-खाय की पवित्र परंपरा से होता है। इस दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान कर शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन के भोजन में कद्दू-भात प्रमुख होता है, जो व्रतधारियों के लिए शक्ति और शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। नहाय-खाय के साथ ही व्रतधारी अगले दिनों के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होते हैं। - दूसरा दिन (6 नवंबर) – खरना:
खरना छठ महापर्व का दूसरा दिन है, जिसमें व्रतधारी पूरे दिन उपवास के बाद शाम को मिट्टी के चूल्हे पर खास खीर बनाते हैं। इसे छठी मैया को अर्पित करने के बाद प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। खरना के बाद से व्रतधारियों का 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास आरंभ होता है, जिसमें वे जल तक ग्रहण नहीं करते। - तीसरा दिन (7 नवंबर) – संध्या अर्घ्य:
छठ पूजा का तीसरा दिन विशेष होता है, जब व्रतधारी निर्जला उपवास रखते हुए संध्या में नदी या तालाब किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह अनोखी परंपरा छठ महापर्व को विशेष बनाती है क्योंकि हिंदू धर्म में आमतौर पर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। श्रद्धालुओं की भक्ति और प्रकृति के प्रति आस्था इस अर्घ्य में झलकती है, जहां सैकड़ों-हजारों लोग एकत्रित होकर पारंपरिक गीतों के साथ सूर्य देव की स्तुति करते हैं। - चौथा दिन (8 नवंबर) – उगते सूर्य को अर्घ्य और व्रत का पारण:
छठ महापर्व का अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का होता है। इस दिन प्रातःकाल व्रतधारी जलाशयों पर एकत्र होते हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस अर्घ्य के बाद व्रत का विधिवत समापन होता है, जिसे पारण कहा जाता है। सूर्य उपासना के इस महापर्व के अंतिम दिन श्रद्धालु अपनी संतान, परिवार और समाज के कल्याण की प्रार्थना करते हैं।
आस्था और प्रकृति प्रेम का पर्व
छठ पूजा में विशेष रूप से प्रकृति के तत्वों, जैसे जल, मिट्टी और सूर्य का उपयोग किया जाता है, जो इसे एक अनोखा पर्व बनाता है। नदियों और जलाशयों के किनारे अर्घ्य देने की परंपरा छठ पूजा को पर्यावरण के प्रति आस्था का संदेश देती है। छठ महापर्व पर न केवल स्थानीय लोग बल्कि प्रवासी भी अपने घर लौटकर इस पर्व को मनाते हैं, जिससे सामाजिक एकता और परंपरा का संदेश संपूर्ण विश्व में फैलता है।
छठ महापर्व का महत्व
छठ केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि साधना, समर्पण और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इस पर्व में हर वर्ग, जाति और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना करते हैं। त्योहार का माहौल देखते ही बनता है, जब लाखों लोग घाटों पर उमड़ते हैं, पारंपरिक वेशभूषा धारण करते हैं और उत्सव में शामिल होते हैं।
छठ महापर्व हर साल इस संदेश को दोहराता है कि श्रद्धा, संयम और त्याग से जीवन में शुद्धता और पवित्रता लाई जा सकती है।