हिंडाल्को की “कोसला” पहल: छत्तीसगढ़ के कोसा सिल्क बुनकरों के जीवन में बड़ा बदलाव, ताना-बाना समारोह में 23 कारीगर हुए सम्मानित
यह केवल बुनकरों के आर्थिक अवसरों को बढ़ाने ही नहीं बल्कि उनकी कला को मान्यता देने का भी एक प्रयास है : सौरभ खेडेकर, सीईओ, हिंडाल्को
रायगढ़: छत्तीसगढ़ की प्राचीन कोसा सिल्क बुनाई कला को पुनर्जीवित करने के अपने अभूतपूर्व प्रयासों के तहत हिंडाल्को इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी “कोसला आजीविका और सामाजिक फाउंडेशन” ने बुनकरों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने का कार्य किया है। इस पहल ने राज्य के कोसा सिल्क बुनकरों की आजीविका को सुधारने और उनके पारंपरिक शिल्प को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
मंगलवार को रायगढ़ में आयोजित ताना-बाना समारोह में कोसला द्वारा कुल 23 बुनकरों, रंगरेज़ों और कोसा धागा निर्माताओं को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया। यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक और कारीगरी धरोहर का उत्सव था, जिसमें बुनकर समुदाय के सदस्यों को उनके शिल्प और योगदान की पहचान दी गई। समारोह में हिंडाल्को के सीईओ, सौरभ खेडेकर ने सम्मानित कारीगरों को संबोधित करते हुए कहा, “हम आपको अपने परिवार की तरह मानते हैं। कोसला के माध्यम से हमारा प्रयास है कि कोसा सिल्क बुनाई की इस पारंपरिक कला को पुनर्जीवित कर उसे विश्व के मानचित्र पर नई ऊंचाइयों तक ले जाया जाए। यह केवल बुनकरों के आर्थिक अवसरों को बढ़ाने का प्रयास नहीं है, बल्कि उनकी कला को मान्यता देने का भी एक प्रयास है।”
सीईओ स्पेशियलिटी एल्यूमिना एंड
केमिकल बिज़नेस सह निदेशक -कोसाला
38 वर्षीय बुनकर सुंदर लाल देवांगन, जो पिछले 18 महीनों से कोसला से जुड़े हुए हैं, ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “पहले मैं साहूकारों के पास काम करता था, जहां हमें कम पैसे मिलते थे और हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन जब से मैं कोसला से जुड़ा हूँ, हमारी आय में वृद्धि हुई है और अब हमें बुनाई के लिए जरूरी धागा और अन्य साधन आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। हिंडाल्को ने हमारे जीवन में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं, जिससे अब हम अधिक कमा सकते हैं और बचत भी कर पा रहे हैं।”
कोसा सिल्क की वैश्विक पहचान
छत्तीसगढ़ का कोसा सिल्क अपनी बारीक बनावट और उत्कृष्ट कारीगरी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हो रहा है। कोसला के माध्यम से साड़ियों, दुपट्टों और स्टोल जैसी सुंदर हस्तनिर्मित वस्त्र अब वैश्विक बाजारों में धूम मचा रहे हैं। यह पहल न केवल कारीगरों के लिए आर्थिक अवसरों का सृजन कर रही है, बल्कि पारंपरिक बुनाई कला को आधुनिक बाजारों में पहचान दिलाने में भी मदद कर रही है।
ताना-बाना समारोह: संस्कृति और कारीगरी का मिलन
ताना-बाना समारोह में रायगढ़ घराने की प्रसिद्ध कथक कलाकार मौलश्री सिंह द्वारा प्रस्तुत एक शानदार कथक नृत्य ने कोसा बुनाई की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाया। इस नृत्य प्रदर्शन ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक प्रस्तुत की। समारोह में उपस्थित सीईओ-कोसला नीता शाह ने इस अवसर पर कहा, “ताना-बाना कार्यक्रम का उद्देश्य उन कारीगरों को सम्मानित करना है जो कठिन परिश्रम से इस शिल्प को जीवित रखे हुए हैं। उनका योगदान अतुलनीय है और यह समारोह उनके कला कौशल का उत्सव है।”
हिंडाल्को का सामुदायिक समर्थन और भविष्य की योजनाएं:
हिंडाल्को का यह सामाजिक उद्यम केवल आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है। इसका उद्देश्य कारीगरों को सशक्त बनाना, उनके लिए बेहतर जीवन और स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान करना है। हिंडाल्को के ज्वाइंट प्रेसिडेंट, स्पेशलिटी एल्युमिना बिजनेस श्री शिशिर मिश्रा ने कहा, “कोसला के माध्यम से हम छत्तीसगढ़ के कोसा सिल्क बुनाई को एक नई दिशा देना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि यह प्राचीन शिल्प और कला न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी पहचान बनाए।”
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ राज्य रेशम उत्पादन विभाग के निदेशक श्री एस.के. कोहलेकर और बुनकर सेवा केंद्र-रायगढ़ के सहायक निदेशक श्री आर.एस. गोखले भी मौजूद थे, जिन्होंने कोसला की इस पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम और प्रयास बुनकरों को सशक्त बनाने और उनकी कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अभूतपूर्व बदलाव और व्यापक सहयोग:
कोसला ने केवल बुनाई के शिल्प को पुनर्जीवित नहीं किया है, बल्कि इसे एक नए स्तर तक पहुंचाया है, जहां बुनकर न केवल अपनी कला में गर्व महसूस करते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त हो रहे हैं। कोसला ने बुनकरों के लिए एक नया जीवन और बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया है, और यह पहल आने वाले वर्षों में और अधिक कारीगरों के जीवन को प्रभावित करेगी।