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झारखंड में पथ निर्माण विभाग में भ्रष्टाचार का अनोखा खेल: कम दर वाली कंपनी को हटाकर 16 करोड़ अधिक पर दिया गया काम

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रांची से अमित : झारखंड में विकास के नाम पर एक बार फिर सरकारी विभागों की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। इस बार मामला पथ निर्माण विभाग से जुड़ा है, जहां टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता को दरकिनार कर 16 करोड़ रुपये अधिक दर पर ठेका आवंटित किए जाने का गंभीर आरोप लगा है। यह पूरा घटनाक्रम न केवल विभागीय लापरवाही बल्कि सुनियोजित भ्रष्टाचार की ओर भी इशारा करता है।

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पहली बार दो कंपनियां हुईं क्वालिफाई, दर खोले गए पारदर्शी तरीके से
सूत्रों के मुताबिक, पथ निर्माण विभाग ने हाल ही में एक बड़े सड़क निर्माण प्रोजेक्ट के लिए टेंडर जारी किया था। निर्धारित प्रक्रिया के तहत तकनीकी बोली में दो कंपनियां क्वालिफाई कीं। इसके बाद विभाग ने दोनों कंपनियों की वित्तीय बोली (फाइनेंशियल बिड) खोली और दर सार्वजनिक की।

पहली बार की प्रक्रिया में यह पूरी तरह पारदर्शी लग रही थी — लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इसके बाद जो हुआ, उसने विभाग की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

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दूसरी बार बोली खोली गई, कम दर वाली कंपनी को हटा दिया गया
आश्चर्य की बात यह रही कि पहली बार फाइनेंशियल बिड खुलने के बावजूद, विभाग ने किसी तकनीकी कारण का हवाला देते हुए प्रक्रिया को फिर से दोहराया। दूसरी बार बोली खोले जाने पर कम दर देने वाली कंपनी को अचानक “अयोग्य” घोषित कर दिया गया।

इस तरह अधिक दर लगाने वाली कंपनी को विजेता घोषित करते हुए कार्य आवंटित कर दिया गया। बताया जा रहा है कि इस बदलाव के कारण राज्य सरकार को करीब 16 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े।

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विभाग के अधिकारियों पर सवाल: किस आधार पर बदला गया निर्णय?
विभागीय सूत्रों का कहना है कि इस प्रक्रिया में कई वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। टेंडर प्रक्रिया के दस्तावेज़ों से यह स्पष्ट है कि कम दर लगाने वाली कंपनी ने सभी मानक पूरे किए थे। फिर भी उसे “टेक्निकल क्लॉज की त्रुटि” बताकर बाहर कर दिया गया।

एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि,

“यह मामला केवल फाइलों में हेरफेर का नहीं बल्कि एक संगठित नेटवर्क का परिणाम है। कई स्तरों पर ‘सहमति’ से यह निर्णय लिया गया ताकि ठेकेदार और अधिकारी दोनों को फायदा मिल सके।”

विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने की जांच की मांग
इस मामले के सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने सरकार और पथ निर्माण विभाग पर निशाना साधा है। एक विपक्षी नेता ने कहा —

“राज्य में सड़क निर्माण योजनाएं भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला बन गई हैं। अधिकारी और ठेकेदार की मिलीभगत से जनता के पैसे की खुली लूट हो रही है।”

सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्टों ने भी इस प्रकरण की विजिलेंस या एसीबी जांच की मांग की है। उनका कहना है कि अगर यह मामला जांच एजेंसियों तक पहुंचा तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे।

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विकास योजनाओं में पारदर्शिता पर सवाल
झारखंड में सड़क निर्माण के नाम पर हर साल अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक बार-बार “गुणवत्ता और पारदर्शिता” की बात करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है।

पथ निर्माण विभाग राज्य के सबसे महत्वपूर्ण विभागों में से एक है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस पर बार-बार भ्रष्टाचार और मिलीभगत के आरोप लगे हैं। सड़क निर्माण परियोजनाओं में देरी, घटिया निर्माण और मनमानी भुगतान जैसे मामले आम हो गए हैं।

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स्थानीय ठेकेदारों में आक्रोश
इस घटना के बाद स्थानीय ठेकेदारों में भी नाराजगी है। उनका कहना है कि विभागीय अधिकारी अपने “पसंदीदा ठेकेदारों” को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को तोड़-मरोड़ रहे हैं।

एक स्थानीय ठेकेदार ने कहा —

“अगर यही सिस्टम चलता रहा तो ईमानदार ठेकेदार काम से बाहर हो जाएंगे और भ्रष्टाचार का राज कायम रहेगा। सरकार को इस मामले में निष्पक्ष जांच करानी चाहिए।”

16 करोड़ का अंतर — जनता के टैक्स की बर्बादी
सरकार का हर एक रुपया जनता के टैक्स से आता है। ऐसे में किसी परियोजना में 16 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ सीधे जनता की जेब पर पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह रकम बचाई जाती, तो इससे किसी जिले में नई सड़कें, पुल या स्वास्थ्य केंद्र बनाए जा सकते थे।

विभागीय सूत्रों ने शुरू की आंतरिक जांच
पथ निर्माण विभाग ने हालांकि अब इस मामले की “प्रारंभिक जांच” शुरू कर दी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सभी फाइलें और तकनीकी दस्तावेज़ मुख्यालय तलब किए गए हैं। यदि अनियमितता की पुष्टि होती है, तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।

हालांकि, राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि जांच अक्सर “फाइलों तक सीमित” रह जाती है और नतीजा कभी सामने नहीं आता।

झारखंड में पथ निर्माण विभाग से जुड़ा यह ताज़ा मामला सरकारी व्यवस्था में व्याप्त उस “सिस्टमेटिक करप्शन” का उदाहरण है, जो पारदर्शिता और ईमानदारी की बुनियाद को खोखला कर रहा है।
जनता को अब यह उम्मीद है कि सरकार इस पर सख्त कदम उठाएगी और दोषियों को बचाने के बजाय न्याय दिलाएगी।

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