पाकुड़ में समाजसेवी लुत्फल हक का मानवीय प्रयास | गोद लिए 100 टीबी मरीजों के बीच बांटे पोषण किट्स, कहा – “बीमारी से लड़ने के लिए पोषण है सबसे बड़ा हथियार

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टीबी मरीजों के लिए मसीहा बनकर सामने आए लुत्फल हक | सीतपहाड़ी में बांटे पोषण किट्स, बोले – “टीबी से जंग के लिए हर नागरिक को आगे आना होगा”

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पाकुड़, झारखंड 30 जुलाई 2025: देशभर में जहां ‘टीबी मुक्त भारत अभियान’ को लेकर सरकार और स्वास्थ्य विभाग के प्रयास जारी हैं, वहीं पाकुड़ के हिरणपुर प्रखंड अंतर्गत सीतपहाड़ी गांव में इस मुहिम को मानवीय स्पर्श देते हुए एक समाजसेवी ने बड़ी मिसाल पेश की है। पाकुड़ के प्रसिद्ध समाजसेवी लुत्फल हक ने मंगलवार को अपने गोद लिए गए 100 टीबी मरीजों में से 50 मरीजों के बीच पोषण किट्स का वितरण किया। इस कार्यक्रम में जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ केके सिंह भी विशेष रूप से उपस्थित रहे। उन्होंने समाजसेवी लुत्फल हक की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि जब तक समाज के जागरूक लोग इस अभियान से नहीं जुड़ेंगे, तब तक “टीबी मुक्त भारत” एक अधूरा सपना ही रहेगा।

100 मरीजों को लिया गोद, पहला चरण आज पूरा
लुत्फल हक ने सीतपहाड़ी और आसपास के क्षेत्रों के कुल 100 टीबी मरीजों को गोद लिया है, जिसमें से पहले चरण में 50 मरीजों को बुलाकर उन्हें पोषण किट्स सौंपे गए। इन किट्स में मरीजों की पोषण आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए चावल, आलू, दाल, सोयाबीन, तेल, नमक, मसाले, हॉर्लिक्स और अन्य खाद्य सामग्री शामिल थीं।

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लुत्फल हक ने मौके पर स्पष्ट कहा –”बीमारी से लड़ाई सिर्फ दवा से नहीं, बल्कि सही पोषण और मानसिक संबल से लड़ी जाती है। मैं वादा करता हूं कि बाकी 50 मरीजों तक भी जल्द ही यह सहायता पहुंचेगी।”

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मरीजों की आंखों में राहत, प्रशासन ने सराहा प्रयास
जैसे ही मरीजों को हाथों में पोषण किट्स मिलीं, उनकी आंखों में राहत और कृतज्ञता दोनों झलक रही थीं। कई मरीजों ने कहा कि इलाज के दौरान पोषण की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, जो अक्सर गरीब परिवारों के लिए मुमकिन नहीं होता। डॉ केके सिंह ने इस पहल को “टीबी के खिलाफ जमीनी स्तर की क्रांति” करार देते हुए कहा –”टीबी को खत्म करने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाएं ही नहीं, समाज की भागीदारी भी उतनी ही जरूरी है। लुत्फल हक जैसे समाजसेवी इस लड़ाई में हमारे सबसे मजबूत साथी हैं।”

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सिर्फ दवा नहीं, मनोबल और मानवता भी जरूरी
कार्यक्रम के दौरान लुत्फल हक ने कहा कि टीबी केवल एक शारीरिक बीमारी नहीं, बल्कि यह मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी मरीज को तोड़ देती है। उन्होंने कहा कि समाज को चाहिए कि वह टीबी मरीजों को हिकारत की नजर से देखना बंद करे और उन्हें सहायता, प्रेम और सम्मान दे।

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“मैं स्वास्थ्य विभाग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हूं। जब तक एक भी टीबी मरीज को पोषण या दवा की कमी होगी, मैं मदद के लिए तत्पर रहूंगा।” – लुत्फल हक

सरकारी अभियान को मिला सामाजिक आधार
“टीबी मुक्त भारत अभियान” केंद्र सरकार द्वारा चलाया गया एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य 2025 तक देश को टीबी से मुक्त करना है। इस अभियान के तहत टीबी मरीजों को गोद लेने की व्यवस्था की गई है, जिसमें कोई भी जागरूक नागरिक, संस्था या संगठन मरीजों की सहायता कर सकता है।

पाकुड़ जिले में यह अभियान जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त प्रयास से तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। और अब, लुत्फल हक जैसे स्थानीय समाजसेवी इसमें नई ऊर्जा भर रहे हैं। जहाँ एक ओर टीबी जैसी संक्रामक बीमारी से लड़ने के लिए दवाएं, जांच और सरकारी योजनाएं जरूरी हैं, वहीं लुत्फल हक जैसे समाजसेवियों का साथ इस लड़ाई को एक मानवीय आंदोलन बना रहा है।उनकी यह पहल सिर्फ पाकुड़ नहीं, बल्कि पूरे झारखंड के लिए एक प्रेरणा है – कि बीमारी के खिलाफ लड़ाई सिर्फ डॉक्टर नहीं, आम लोग भी जीत सकते हैं – अपने प्रयासों और नीयत से।

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