शिबू सोरेन के निधन पर झारखंड में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित, राज्य में शोक की लहर, 5 बजे मोराबादी आएगा पार्थिव शरीर , मगलवार को होगा अंतिम संस्कार

रांची: झारखंड की राजनीति के सबसे बड़े स्तंभ और आदिवासी चेतना के प्रतीक शिबू सोरेन उर्फ़ ‘गुरुजी’ के निधन की खबर ने पूरे राज्य को शोक में डुबो दिया है। झारखंड सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। इस दौरान प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालय, स्कूल-कॉलेज बंद रहेंगे और किसी भी प्रकार के सरकारी उत्सव आयोजित नहीं किए जाएंगे।

गुरुजी नहीं रहे – झारखंड के आत्मा का क्षरण
शिबू सोरेन का स्वास्थ्य बीते कई महीनों से खराब चल रहा था। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 81 वर्ष के थे। उनकी पहचान न केवल एक वरिष्ठ नेता के रूप में थी, बल्कि एक जन आंदोलन के नेतृत्वकर्ता, झारखंड अलग राज्य के शिल्पकार और आदिवासी अस्मिता के रक्षक के रूप में भी थी।
तीन दिन का राजकीय शोक, अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ
मुख्यमंत्री सचिवालय से जारी अधिसूचना के अनुसार, शिबू सोरेन के निधन पर 4, 5 और 6 अगस्त को राजकीय शोक रहेगा। इस दौरान सभी सरकारी भवनों पर झंडा आधा झुका रहेगा, कोई भी सरकारी समारोह आयोजित नहीं किया जाएगा वहीँ विधानसभा का मॉनसून सत्र भी अनिश्चित काल तक स्थगित हो गया है | आज शाम 5 बजे विशेष विमान से उनका पार्थिव शरीर मोराबादी लाया जायेगा , जहां अंतिम दर्शन के लिए रखा जायेगा। मंगलवार को दिवंगत नेता का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गांव नेमरा (रामगढ़ ) में किया जाएगा।

सियासी जगत में शोक की लहर, देशभर से श्रद्धांजलि
देशभर के राजनीतिक दलों और नेताओं ने शिबू सोरेन के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा –

“शिबू सोरेन जी का जीवन आदिवासियों और वंचितों के लिए समर्पित रहा। झारखंड के लिए उनका योगदान अविस्मरणीय है। मैं उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ।”

राहुल गांधी, अमित शाह, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, नितीश कुमार, तेजस्वी यादव सहित कई नेताओं ने भी गुरुजी के निधन पर गहरी पीड़ा व्यक्त की।
झारखंड की राजनीति में अमिट छाप
शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना कर आदिवासी समाज को राजनीतिक मंच दिया। वे कई बार लोकसभा सांसद, केंद्र सरकार में मंत्री और झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने। उनका जीवन जल-जंगल-जमीन, संविधानिक अधिकारों, और स्थानीय स्वशासन की लड़ाई को समर्पित था।
गुरुजी की अंतिम यात्रा – जनसैलाब की उम्मीद
राज्य सरकार के अनुसार, रांची में जनता के अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर रखा जाएगा, जिसके बाद शवयात्रा उनके पैतृक गांव रवाना होगी। वहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका दाह संस्कार किया जाएगा।
झारखंड के हर गांव, टोला और शहर में आज केवल एक ही बात है – “गुरुजी नहीं रहे…”लेकिन उनका संघर्ष, विचार और आंदोलन की भावना हमेशा झारखंड की धरती में जीवित रहेगी। झारखंड की आत्मा आज मौन है, लेकिन इतिहास उनका नाम गूंजते हुए याद रखेगा।