महुआ की खुशबू से महक उठा साहिबगंज — फूल बना आदिवासियों का सहारा

साहिबगंज से विशेष : प्रकृति की गोद में बसे साहिबगंज के जंगल इन दिनों महुआ फूल की भीनी-भीनी खुशबू से सराबोर हैं। पतझड़ के इस मौसम में जहां पेड़ों से पत्ते गिरते हैं, वहीं महुआ की मिठास लोगों की ज़िंदगी में मिठास घोल रही है। साहिबगंज के ग्रामीण इलाकों में आदिवासी समुदाय के लिए महुआ फूल सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि रोज़गार और जीवन का सहारा है।


झारखंड के साहिबगंज जिले के जंगलों में इन दिनों एक अलग ही नज़ारा देखने को मिल रहा है। आदिवासी महिलाएं और पुरुष, सुबह-सवेरे बोरी, डलिया और टोकरी लेकर जंगल की ओर निकलते हैं — जहां महुआ के पेड़ों से गिरे फूलों को चुनकर जमा करते हैं।
महुआ के फूल जहां पारंपरिक पेय और औषधीय उपयोगों के लिए जाने जाते हैं, वहीं आज यह ग्रामीण आदिवासियों के लिए रोज़ी-रोटी का मुख्य जरिया बन गया है।


महुआ की महक से जंगल तो महक ही रहे हैं, साथ ही आदिवासियों की झोपड़ियों में भी उम्मीदें पनप रही हैं। हालांकि वन विभाग द्वारा महुआ की ख़रीदारी नहीं होने से आदिवासियों को बाज़ार में औने-पौने दाम पर इसे बेचना पड़ता है।
स्थानीय लोगों की मांग है कि सरकार यदि पहल करे तो महुआ से न केवल आत्मनिर्भरता बढ़ेगी बल्कि आदिवासी समुदाय की आय में भी बड़ा सुधार होगा


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