बाबूडीह के मचानाटांड़ में दो जगह टूटी नहर, भ्रष्टाचार की परतें एक बार फिर बेनकाब
रिपोर्ट: नीरज सिंह बोकारो, झारखंड :बोकारो जिले की बहुचर्चित गवाई बैराज योजना एक बार फिर सवालों के घेरे में है। चास और चंदनकियारी प्रखंड के 4636 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा देने के उद्देश्य से बनी यह योजना, अब भ्रष्टाचार और तकनीकी खामियों का पर्याय बनती जा रही है।
ताजा मामला चास प्रखंड के बाबूडीह पंचायत अंतर्गत मचानाटांड गांव का है, जहां गवाई बैराज की मुख्य कैनाल दो स्थानों पर टूट गई। पानी के अत्यधिक दबाव के कारण कैनाल की दीवारें फिर से ध्वस्त हो गईं और पानी सीधे बगल के तालाबों और खेतों में जा घुसा।
मछलियां बह गईं, धान के खेत डूबे स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, नहर टूटने से पहले ही पानी बेकाबू हो गया और पास के तालाब में भर जाने से सैकड़ों मछलियां बहकर चली गईं। इतना ही नहीं, खेतों में खड़ी धान की फसल पर भी इसका सीधा असर पड़ा है। गांव वालों की मेहनत पर एक बार फिर पानी फिर गया है।
ट्रायल के एक साल बाद फिर दोहराया हादसा गवाई बैराज योजना की कुल लागत 122 करोड़ रुपये थी। इस परियोजना की नींव 2016 में रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में रखी गई थी। 30 जुलाई 2023 को इसका पहला ट्रायल किया गया, लेकिन ठीक एक महीने बाद ही सिलफोर गांव में यह नहर पहली बार टूटी थी।
उसके बाद राज्य सरकार ने कार्यरत कंपनी त्रिवेणी इंजिकन प्राइवेट लिमिटेड को गुणवत्ता में भारी कमी के आरोप में 17 जनवरी 2024 को ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इसके बावजूद, उसी योजना का ढांचा फिर से चरमरा गया, जो बड़े पैमाने पर निर्माण में भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।
विभाग की लीपापोती शुरू घटना की जानकारी मिलते ही तेनुघाट बांध प्रमंडल हरकत में आया और जेसीबी मशीन भेजकर कैनाल की मिट्टी से मरम्मत का काम शुरू कर दिया गया। हालांकि, इस तरह की तात्कालिक मरम्मत किसानों के लिए कोई राहत नहीं है। ग्रामीण मुआवजे की मांग कर रहे हैं और सवाल उठा रहे हैं कि— “अगर ट्रायल के बाद एक साल में दो बार नहर टूटे, तो कौन जिम्मेदार है?”
सांसद प्रतिनिधि ने मांगा जवाब घटना की जानकारी मिलने पर धनबाद सांसद के प्रतिनिधि त्रिपुरारी नाथ तिवारी भी मौके पर पहुंचे और अधिकारियों से इस पर स्पष्टीकरण और जिम्मेदारी तय करने की मांग की। उन्होंने कहा—
“इस योजना में शुरू से भ्रष्टाचार है, ठेकेदारों को गुणवत्ता की कोई चिंता नहीं। अब इसका खामियाजा किसान भुगत रहे हैं। हम सरकार से तत्काल उच्चस्तरीय जांच की मांग करेंगे।”
“हमलोगों की फसल डूब गई। तालाब का सारा मछली बह गया। सरकार को हमें मुआवजा देना चाहिए। ये कैनाल बार-बार क्यों टूटता है?” : परवेज आलम, ग्रामीण
“धान लगा रहे थे। अब पूरा खेत जलमग्न हो गया है। मेहनत पर पानी फिर गया।” : सैमन बीबी, ग्रामीण
गवाई बैराज योजना का बार-बार फेल होना बताता है कि सरकार और ठेका कंपनियों के बीच “सेटिंग” और “गुणवत्ता में कमी” की पुरानी बीमारियां आज भी जिंदा हैं। किसानों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, लेकिन अब जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन को जवाबदेही तय करनी होगी।
यदि यह स्थिति नहीं सुधरी, तो आने वाले वर्षों में यह पूरी योजना महज एक ‘बर्बाद हुआ सपना’ बनकर रह जाएगी।