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झारखंड में सड़क निर्माण टेंडर का ‘संयोग’ या ‘सेटिंग’? दो विभाग, तीन कंपनियां और दोनों काम एक ही को मिले

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राँची से अमित: झारखंड में सड़क निर्माण विभागों की टेंडर प्रक्रिया पर भारी सवाल उठ रहे हैं। पथ निर्माण विभाग और स्टेट हाईवे अथॉरिटी ऑफ झारखंड (SHAJ) द्वारा निकाले गए दो बड़े टेंडरों में तीन ही कंपनियाँ तकनीकी तौर पर क्वालिफाई हुईं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से दोनों ठेके भारत वाणिज्य ईस्टर्न प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता को आवंटित कर दिए गए। यह मामला प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है और इसे महज संयोग मानना मुश्किल है।

पहला टेंडर: दुमका एयरपोर्ट रोड
पथ निर्माण विभाग ने एडीबी रोड (चिगलपहाड़ी) से दुमका-रामपुर हाईवे होते हुए गोविंदपुर-दुमका एयरपोर्ट रोड तक 10.36 किलोमीटर लंबी सड़क निर्माण परियोजना के लिए टेंडर आमंत्रित किया। इस परियोजना के लिए 301.98 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दी गई थी, जबकि निविदा 222.65 करोड़ रुपये पर जारी हुई।

12 अगस्त 2024 को तकनीकी बोली खोली गई, जिसमें कुल 8 कंपनियों ने भाग लिया। लेकिन केवल तीन कंपनियां तकनीकी रूप से पास हुईं:

  1. भारत वाणिज्य ईस्टर्न प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता
  2. दिनेशचंद्र आर अग्रवाल इंफ्राकॉन प्राइवेट लिमिटेड, गुजरात
  3. भरिताय इंफ्रा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, गुवाहाटी
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फायनांशियल बोली खुलने पर भारत वाणिज्य ईस्टर्न को 7.46% अधिक बोली पर भी ठेका आवंटित कर दिया गया। अधिक दर पर 239.25 करोड़ रुपये की पेशकश की और आश्चर्यजनक रूप से टेंडर उसी को आवंटित कर दिया गया।

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दूसरा टेंडर: गोला–मूरी रोड निर्माण कार्य
इसके बाद स्टेट हाईवे अथॉरिटी ऑफ झारखंड (SHAJ) ने गोला–मूरी रोड के निर्माण के लिए टेंडर निकाला। इस परियोजना की लंबाई 25.16 किलोमीटर है और सरकार ने इसके लिए 333.17 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दी थी।

इस परियोजना के लिए 246.94 करोड़ रुपये का बीड डोक्युमेंट तैयार कर 23 अगस्त 2024 को टेंडर आमंत्रित किया गया। कुल 24 कंपनियों ने भाग लिया, लेकिन एक बार फिर केवल तीन कंपनियां तकनीकी चरण में सफल रहीं — वही तीन कंपनियां जो पिछले टेंडर में थीं:

  1. भारत वाणिज्य ईस्टर्न प्राइवेट लिमिटेड (कोलकाता)
  2. दिनेशचंद्र आर अग्रवाल इंफ्राकॉन प्रा. लि. (गुजरात)
  3. भरिताय इंफ्रा प्रोजेक्ट्स लि. (गुवाहाटी)

इस बार क्रम कुछ बदला जरूर — भरिताय दूसरे और दिनेशचंद्र तीसरे स्थान पर रहे — लेकिन विजेता कंपनी वही रही: भारत वाणिज्य ईस्टर्न प्राइवेट लिमिटेड।

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संयोग या सिस्टम की सेटिंग?
दोनों ही टेंडर अगस्त 2024 में जारी हुए, दोनों में तीन ही कंपनियां तकनीकी रूप से पास हुईं और दोनों में एक ही कंपनी को काम मिला। इतना ही नहीं, दोनों टेंडरों की प्रक्रिया लगभग समान समयावधि में पूरी हुई।

सवाल यह है कि जब झारखंड में सड़क निर्माण के इतने बड़े और प्रतिस्पर्धात्मक ठेके जारी किए जाते हैं, तो आखिर वही कंपनियां बार-बार क्यों और कैसे चयनित होती हैं? क्या यह किसी ठेकेदार लॉबी की ताकत है या फिर विभागीय सिस्टम के भीतर कोई गहरी साठगांठ?

संख्याओं में समानता से बढ़ा संदेह

विवरण

पहला टेंडर

  • पथ निर्माण विभाग
  • परियोजना लंबाई – 10.36 किमी
  • प्रशासनिक स्वीकृति – ₹301.98 करोड़
  • निविदा आमंत्रण – 12 अगस्त 2024
  • सफल कंपनियां – 3
  • विजेता कंपनी – भारत वाणिज्य ईस्टर्न प्राइवेट लिमिटेड

दूसरा टेंडर

  • स्टेट हाईवे अथॉरिटी
  • परियोजना लंबाई – 25.16 किमी
  • प्रशासनिक स्वीकृति – ₹333.17 करोड़
  • निविदा आमंत्रण – 23 अगस्त 2024
  • सफल कंपनियां – 3
  • विजेता कंपनी – भारत वाणिज्य ईस्टर्न प्राइवेट लिमिटेड

इन समान आंकड़ों ने इस पूरे प्रकरण को “संयोग नहीं, सेटिंग” के रूप में देखने वालों को और मजबूत तर्क दे दिया है।

विभागीय मौन और जनता की प्रतिक्रिया
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, अभी तक किसी भी विभागीय अधिकारी ने इस संयोग पर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है।
जनता और सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर झारखंड में सरकारी टेंडरों की पारदर्शिता कहाँ है?

कई नागरिकों ने व्यंग्य में कहा कि —

“अगर झारखंड में टेंडर जीतने की गारंटी चाहिए, तो बस सही जगह सेटिंग बना लीजिए।”

संभावित जांच और राजनीतिक पहलू
यह मामला अब “जांच का विषय” बन चुका है। वित्तीय समानता, कंपनियों की दोहराई गई पात्रता, और विभागों की चुप्पी — ये सभी संकेत किसी संभावित टेंडर मैनिपुलेशन की ओर इशारा करते हैं।
राजनीतिक हलकों में भी चर्चा है कि अगर इस पर स्वतंत्र जांच नहीं हुई, तो यह झारखंड की निर्माण नीति पर सवाल खड़ा करेगा।

दो विभाग, दो परियोजनाएँ, तीन कंपनियाँ — और दोनों ठेके एक ही कंपनी को।
यह सचमुच एक “अद्भुत संयोग” है या फिर “सुनियोजित सेटिंग”, इसका जवाब अब सिर्फ जांच से ही मिल सकता है। झारखंड जैसे विकासशील राज्य में जब सड़क निर्माण जैसी मूलभूत परियोजनाएँ भी संदेह के घेरे में आती हैं, तो यह न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता बल्कि जनता के भरोसे पर भी चोट करती है।

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