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शोक में भी सेवा का संकल्प: बाबा को खोने के बाद भी पुत्र धर्म और राजधर्म साथ निभा रहे हैं मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन

नेमरा, गोला, रामगढ़: राजनीति में कुछ क्षण ऐसे आते हैं जब व्यक्तिगत जीवन का सबसे बड़ा दुख और सार्वजनिक कर्तव्य एक साथ टकराते हैं।
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन इस समय अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। पांच दिन पहले उनके पिता, झारखंड के निर्माता, पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन हुआ।
एक ओर ‘बाबा’ की असहनीय कमी, दूसरी ओर पूरे राज्य की जिम्मेदारी — इन दोनों के बीच मुख्यमंत्री अदम्य धैर्य के साथ पुत्र धर्म और राजधर्म का संतुलन बनाए हुए हैं।

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दुःख के बीच भी शासन का संचालन
मुख्यमंत्री इस समय रामगढ़ जिले के नेमरा स्थित पैतृक आवास में रहकर पारंपरिक श्राद्ध संस्कार निभा रहे हैं।
हर दिन स्थानीय विधि-विधान के अनुसार बाबा को भोजन परोसने, अनुष्ठान कराने और परिवार के साथ शोक-संवेदना में शामिल होने के बावजूद, वे राज्य के प्रशासनिक कार्यों में किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरत रहे।

वे आवश्यक सरकारी फाइलें वहीं से देख रहे हैं, वरीय अधिकारियों से सीधे संवाद कर रहे हैं और हर जरूरी निर्णय समय पर ले रहे हैं।
उनका स्पष्ट निर्देश है कि जनता की समस्याओं का त्वरित समाधान किया जाए और किसी भी स्तर पर शासन-प्रशासन की रफ्तार धीमी न पड़े।

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जनता से मिली हिम्मत

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मुख्यमंत्री ने कहा,

“बाबा के निधन पर जिस तरह राज्य की जनता मेरे परिवार के साथ खड़ी रही, उसी ने मुझे यह हिम्मत दी कि मैं इन कठिन परिस्थितियों में भी अपने दायित्वों को निभा सकूं।”

उनका मानना है कि यह समर्थन केवल संवेदना नहीं, बल्कि उनके लिए एक नैतिक शक्ति है, जो उन्हें आगे बढ़ने का साहस देती है।

बाबा की सीख और वचन
शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष, त्याग और जनसेवा का पर्याय रहा।
हेमन्त सोरेन भावुक होकर कहते हैं,

“बाबा हमेशा कहते थे — सार्वजनिक जीवन में जनता के लिए खड़े रहना, संघर्ष से पीछे नहीं हटना।

उन्होंने संसद से लेकर सड़कों तक झारखंड के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। आज राज्य का अस्तित्व ही उनकी देन है। मैंने उनसे जो वचन लिए, उन्हें इस कठिन समय में भी निभा रहा हूँ।”

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पुत्र धर्म और राजधर्म का संगम
श्राद्ध संस्कार के दौरान भी मुख्यमंत्री रोज़ाना आवश्यक फाइलों का निष्पादन कर रहे हैं,
मंत्रालय और जिलों के अफसरों को निर्देश दे रहे हैं, और आपात निर्णय लेने से नहीं चूक रहे।
यह स्थिति न केवल उनकी कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि वे बाबा के आदर्शों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं।

शिबू सोरेन की विरासत ज़िंदा है
आज भले ही दिशोम गुरु का शारीरिक साया उठ गया हो,
लेकिन उनकी विचारधारा, संघर्ष की प्रेरणा और जनता के प्रति समर्पण मुख्यमंत्री के हर निर्णय में जीवित है।
हेमन्त सोरेन इस कठिन समय में भी यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि बाबा के सपनों का झारखंड बनाने का कार्य रुकने न पाए।

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