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मनरेगा खत्म कर नया कानून लाया तो झारखंड को 1000 करोड़ का सालाना झटका!

Gramin Rozgar

Viksit Bharat–GRAM Bill लागू होने पर राज्य पर 2.69 गुना बढ़ेगा खर्च

Ranchi: केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘विकसित भारत – गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी VB-G RAM G बिल, 2025 अगर कानून का रूप लेता है, तो इसका सीधा और गहरा असर झारखंड की वित्तीय सेहत पर पड़ेगा। सरकारी आंकड़ों और वित्तीय आकलन के अनुसार, इस नए कानून के लागू होने से झारखंड सरकार को औसतन हर साल करीब 1000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा, वहीं ग्रामीण रोजगार योजनाओं पर राज्य का खर्च मौजूदा व्यवस्था से 2.69 गुना तक बढ़ जाएगा।

मनरेगा बनाम जी-राम-जी: फंडिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) वर्ष 2005 में लागू किया गया था और अप्रैल 2008 से पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी है। झारखंड जैसे आदिवासी और पिछड़े राज्य में यह योजना ग्रामीण आजीविका की रीढ़ मानी जाती है।

वर्तमान व्यवस्था के तहत मनरेगा में मजदूरी की पूरी 100 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार देती है, जबकि योजनाओं में उपयोग होने वाली सामग्री की लागत का 75 प्रतिशत केंद्र और 25 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करती है। इस तरह किसी भी मनरेगा योजना पर औसतन 90 प्रतिशत खर्च केंद्र सरकार और सिर्फ 10 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार को उठाना पड़ता है।

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लेकिन केंद्र सरकार के नए प्रस्तावित VB-G RAM G बिल में यही फंडिंग पैटर्न पूरी तरह बदल दिया गया है। नए कानून के तहत कुल लागत का 60 प्रतिशत केंद्र और 40 प्रतिशत राज्य सरकार को देना होगा। यही बदलाव झारखंड के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गया है।

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125 दिन काम, लेकिन राज्यों पर भारी आर्थिक बोझ
नए बिल में यह प्रावधान किया गया है कि ग्रामीण परिवारों को 100 दिन के बजाय 125 दिन रोजगार की कानूनी गारंटी मिलेगी। देखने में यह कदम रोजगार बढ़ाने वाला लगता है, लेकिन वित्तीय ढांचे में कटौती के कारण इसका बोझ सीधे राज्यों पर पड़ रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार मजदूरी और सामग्री लागत में अपनी हिस्सेदारी घटाकर राज्यों को ज्यादा खर्च उठाने के लिए मजबूर कर रही है। झारखंड जैसे राज्य, जहां पहले से ही संसाधन सीमित हैं, वहां यह मॉडल वित्तीय असंतुलन पैदा कर सकता है।

एक सिंचाई कूप से समझिए पूरा गणित
अगर मनरेगा के तहत एक सिंचाई कूप का निर्माण किया जाए, जिसकी कुल लागत 4.24 लाख रुपये है, तो मौजूदा व्यवस्था में राज्य सरकार का खर्च सिर्फ 62,905 रुपये आता है। बाकी राशि केंद्र सरकार वहन करती है। लेकिन यही काम अगर VB-G RAM G के तहत किया गया, तो राज्य सरकार को 1.69 लाख रुपये खर्च करने होंगे। यानी एक ही योजना पर राज्य का खर्च करीब तीन गुना हो जाएगा। यही अंतर पूरे राज्य में हजारों योजनाओं पर लागू होगा, जिससे झारखंड के खजाने पर भारी दबाव पड़ेगा।

पहले ही घट रही है केंद्र की मदद
चिंता की बात यह भी है कि केंद्र सरकार ने बीते वर्षों में मनरेगा के लिए झारखंड को मिलने वाली राशि में लगातार कटौती की है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में झारखंड को 3489.83 करोड़ रुपये मिले थे, जो 2024-25 में घटकर 2721.53 करोड़ रुपये रह गए। चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 में अब तक केवल 2443.98 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं।

झारखंड सरकार की बढ़ेगी मुश्किल
अगर प्रस्तावित कानून लागू होता है, तो झारखंड सरकार को न केवल अधिक पैसा खर्च करना होगा, बल्कि ग्रामीण रोजगार योजनाओं की निरंतरता बनाए रखना भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे विकास कार्यों की गति प्रभावित हो सकती है और राज्य सरकार पर कर्ज का दबाव भी बढ़ सकता है।

राजनीतिक बहस और टकराव के संकेत
इस बिल को लेकर आने वाले दिनों में केंद्र और राज्यों के बीच टकराव तेज होने की संभावना है। झारखंड सरकार के लिए यह सिर्फ रोजगार का नहीं, बल्कि आर्थिक अस्तित्व का सवाल बनता जा रहा है।

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