बिहार में प्रशांत किशोर की करारी हार, ‘वोटकटवा’ बनने का दावा भी फुस्स निकला?
बिहार : बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों ने कई राजनैतिक समीकरणों को बदल डाला है, लेकिन सबसे बड़ा झटका उस शख्स को लगा है जिसने पिछले तीन वर्षों से बिहार की सियासी जमीन को नाप-नापकर खुद को एक “विकल्प” के रूप में पेश किया था—प्रशांत किशोर (PK)।
शुरुआती रुझानों से लेकर लगभग तय नतीजों तक, जन सुराज पार्टी (JSP) की स्थिति बेहद खराब दिख रही है। पार्टी न केवल सीटों से बाहर हो रही है, बल्कि वोट शेयर के मामले में भी JSP उस स्तर तक नहीं पहुंच सकी जिसे “वोटकटवा” की श्रेणी में भी रखा जा सके।
पीके की राजनीति—तेजी से चढ़ने के बाद भारी गिरावट
प्रशांत किशोर ने जिस तेजी से बिहार की राजनीति में प्रवेश किया था, उसी तेजी से उनकी उम्मीदें भी टूट गईं। हजारों किलोमीटर की पदयात्रा, गांव–गांव में संवाद, बदलाव की बात, नई राजनीति का दावा—सबकुछ चुनावी नतीजों के सामने फीका पड़ गया। जन सुराज पार्टी की न तो कोई सीट दिख रही है, और न ही इतना वोट प्रतिशत कि उसे एक प्रभावशाली उपस्थिति माना जा सके।
क्या प्रशांत किशोर अब ‘संन्यास’ लेंगे?
चुनाव से पहले खुद प्रशांत किशोर ने बार–बार कहा था—
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“यदि जनता हमें मौका नहीं देती तो मैं राजनीति में नहीं रहूंगा।”
अब नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि जनता ने उन्हें मौका नहीं दिया। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या पीके अपना ‘संन्यास’ वाला वादा निभाएंगे? या वे इसे भी राजनीतिक बयान कहकर आगे बढ़ जाएंगे?
जन सुराज की रणनीति क्यों फेल हुई?
विश्लेषकों के अनुसार JSP की हार के कुछ प्रमुख कारण रहे:
- ग्राउंड स्ट्रक्चर कमजोर – प्रशांत किशोर व्यक्तिगत लोकप्रियता तो रखते हैं, लेकिन पार्टी संगठन का अभाव साफ दिखा।
- उम्मीदवार चयन विवादित – कई सीटों पर अपरिचित और कमजोर उम्मीदवार।
- वोटर का विश्वास नहीं बना पाए – बदलाव की भाषा जनता को प्रभावित नहीं कर सकी।
- NDA की लहर और MGB की परंपरागत पकड़ – JSP की गुंजाइश और सिकुड़ गई।
- जमीन से ज्यादा सोशल मीडिया पर जोर – डिजिटल मूवमेंट जमीन की राजनीति पर हावी नहीं हो सका।
क्या PK खुद को फिर से करेंगे “रीलॉन्च”?
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार के रूप में दुनिया में पहचान रखते हैं, लेकिन नेता बनना उनसे नहीं हुआ। अब बड़ा सवाल यही है कि—
- क्या वे जन सुराज को जारी रखेंगे?
- क्या वे खुद दोबारा चुनावी राजनीति में उतरेंगे?
- या फिर वापस अपनी पुरानी भूमिका—रणनीतिकार—में लौट जाएंगे?
नतीजों ने साफ कर दिया—जन सुराज को जनता ने नकारा
बिहार के इस चुनावी रण में JSP कहीं भी प्रभाव नहीं छोड़ पाई। इस करारी हार ने पीके की राजनीतिक यात्रा पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
अब सबकी नजर पीके के अगले कदम पर होगी— क्या वह वास्तव में राजनीति से संन्यास की घोषणा करेंगे?



