PMO का नाम ‘सेवा तीर्थ’, देशभर के राजभवन नए नाम ‘लोकभवन’ से जाने जाएंगे
नई दिल्ली: भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक और व्यापक प्रशासनिक-सांस्कृतिक बदलाव की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) का आधिकारिक नाम बदल दिया है। अब देश में प्रधानमंत्री कार्यालय “सेवा तीर्थ” नाम से जाना जाएगा। इसी के साथ पूरे देश के राजभवनों को भी नया नाम दिया गया है, जिन्हें अब “लोकभवन” कहा जाएगा। यह निर्णय प्रतीकात्मक रूप से शासन के उस बदलते स्वरूप की ओर संकेत करता है, जो सत्ता और अधिकार की परंपरागत छवि से आगे बढ़कर “सेवा, जनसंपर्क और नैतिक जिम्मेदारी” पर आधारित है।
सत्ता से सेवा की ओर संक्रमण की प्रतीकात्मक पहल
पीएमओ की ओर से जारी जानकारी के अनुसार, यह नाम परिवर्तन केवल पदनाम का बदलाव नहीं है बल्कि शासन की संपूर्ण सोच, दृष्टिकोण और चरित्र में हो रहे परिवर्तन का संकेत है। सरकार का कहना है कि भारत की पब्लिक इंस्टीट्यूशन्स अब “सत्ता के केंद्र” नहीं, बल्कि “सेवा के केंद्र” के रूप में देखे जाने चाहिए।
नई परिभाषा के अनुसार, “सेवा तीर्थ” का अर्थ केवल प्रशासन चलाना नहीं, बल्कि देश की जनता के लिए सेवा को सर्वोपरि रखना है। इसे सरकार की उस नीति से जोड़ा जा रहा है, जो पिछले कुछ वर्षों से ‘सेवा भाव’, ‘जनसेवा केंद्रित प्रशासन’ और ‘पारदर्शी शासन’ पर जोर देती आई है।
राजभवनों का नाम बदलकर ‘लोकभवन’ — सांस्कृतिक बदलाव का संकेत
पीएमओ के नाम के साथ-साथ पूरे देश के राजभवनों का नाम बदलकर “लोकभवन” रखा जाना भी एक बड़े वैचारिक बदलाव की ओर इशारा करता है। राजभवनों को लंबे समय से सत्ता और विशेषाधिकार के प्रतीक के रूप में देखा जाता रहा है। अब उन्हें “लोक” यानी आम जनता का घर या उनके लिए उत्तरदायी संस्थान के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि यह कदम उस विचारधारा को आगे बढ़ाता है जिसमें शासन का हर संस्थान जनता के प्रति उत्तरदायी, पारदर्शी और सेवा-उन्मुख हो। राजभवनों की भूमिका अब जनहित, जनसेवा और जनसंवाद की दिशा में और अधिक सुदृढ़ करने की मंशा दिखाई देती है।
सरकारी बयान—‘बदलाव सिर्फ प्रशासनिक नहीं, सांस्कृतिक है’
पीएमओ द्वारा जारी बयान में यह स्पष्ट किया गया कि यह निर्णय मात्र नाम बदलने जैसा औपचारिक प्रशासनिक कदम नहीं है। इसे सांस्कृतिक सुधारों और मानसिकता में बदलाव के बड़े अभियान का हिस्सा बताया गया है।
शासन-प्रणाली में यह परिवर्तन भारतीय परंपरा, समाज और लोकतंत्र के उस मूल मूल्य से जुड़ा है जहाँ नेतृत्व का अर्थ ‘सेवा’ माना गया है।
क्या बदल जाएगा, क्या नहीं?
हालांकि PMO और राजभवन का नाम बदल दिया गया है, लेकिन उनके प्रशासनिक ढांचे, संवैधानिक अधिकारों और कार्यप्रणाली में कोई तत्काल बदलाव नहीं किया गया है। यह प्रतीकात्मक परिवर्तन शासन की नई प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण को दर्शाता है।
सेवा तीर्थ (पूर्व PMO) पहले की तरह ही प्रधानमंत्री के कार्यालय, नीति निर्माण और प्रशासनिक समन्वय का केंद्र बना रहेगा।
इसी तरह, लोकभवन (पूर्व राजभवन) राज्यपालों के कार्यालय के रूप में काम करते रहेंगे।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ
घोषणा के बाद राजनीतिक गलियारों और देश भर में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। कुछ समूह इसे सकारात्मक और जनता-केंद्रित कदम बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे प्रतीकात्मक सुधार करार दे रहे हैं। शिक्षाविदों और प्रशासनिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह पहल शासन की सोच में एक नई दिशा स्थापित करने की कोशिश है, जो प्रशासन को अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार बनाएगी।
शासन की छवि बदलने की कोशिश
PMO का नाम ‘सेवा तीर्थ’ और राजभवनों का नाम ‘लोकभवन’ रखना भारत की प्रशासनिक भाषा और राजनीतिक मानस से जुड़ा एक बड़ा परिवर्तन है। सरकार इसे “सत्ता नहीं, सेवा की भावना वाले” प्रशासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बता रही है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में ये बदलाव केवल प्रतीकात्मक रहेंगे या शासन की कार्यप्रणाली और जनता के साथ उसके जुड़ाव में वास्तविक प्रभाव भी दिखाएंगे।



