...

गिरिडीह में फिर बेनकाब हुआ माइका का काला खेल: तिसरी-गावां में छापेमारी, सैकड़ों बोरा अभ्रक बरामद

Mining Scam

गिरिडीह: गिरिडीह जिले के तिसरी–गावां प्रखंड का जंगली इलाका वर्षों से अभ्रक यानी माइका के अवैध खनन और तस्करी का गढ़ बना हुआ है। यह कोई नई कहानी नहीं है। दशकों से यहां दर्जनों छोटी-बड़ी खदानें मजदूरों की रोजी-रोटी का बहाना बनाकर धरती का सीना चीरती रहीं। ढिबरा के नाम पर कीमती माइका निकाला गया, उसे देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया और इस काले धंधे से जुड़े सफेदपोश लगातार अमीर बनते चले गए। दूसरी ओर, गरीब आदिवासी मजदूरों को बदले में सिर्फ बीमारी, कुपोषण और अकाल मौत मिली।

इस अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने के दावे तो हर बार किए गए, लेकिन जमीनी हकीकत यही रही कि माइका सिंडिकेट हमेशा प्रशासन से एक कदम आगे रहा। हालांकि इस बार जिला प्रशासन ने माइका माफियाओं पर एक ऐसी चोट की है, जिसने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दिया है।

केवटाटांड में बड़ी छापेमारी, दो गोदामों से भारी मात्रा में माइका बरामद
खोरी महुआ के एसडीएम अनिमेष रंजन और एसडीपीओ राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में प्रशासनिक टीम ने शुक्रवार देर शाम तिसरी प्रखंड के केवटाटांड इलाके में छापेमारी की। इस कार्रवाई के दौरान दो गोदामों का पता चला, जहां अवैध रूप से माइका जमा किया गया था। जब गोदामों की तलाशी ली गई, तो वहां से सैकड़ों बोरा माइका और माइका पाउडर, साथ ही माइका प्रोसेसिंग में इस्तेमाल की जाने वाली कई मशीनें बरामद की गईं।

whatsapp channel

Maa RamPyari Hospital

Telegram channel

छापेमारी के दौरान टीम को देखकर इलाके में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। कई लोग मौके से फरार हो गए। प्रशासन के इस कदम के बाद से तिसरी-गावां क्षेत्र के माइका माफियाओं में दहशत का माहौल है।

The-habitat-final-ad-scaled.jpg
the-habitat-ad

सालों से चलता रहा अवैध कारोबार, अब प्रशासन की सख्ती
गिरिडीह से लेकर तिसरी और गावां तक ऐसे कई लोग हैं, जो इस धंधे से करोड़पति बन चुके हैं। आरोप है कि सरकार को इस अवैध खनन और तस्करी से अरबों रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है। जंगल, वन भूमि और संरक्षित क्षेत्रों में खुलेआम माइका निकाला गया, लेकिन वन विभाग और खनन विभाग समय-समय पर सिर्फ औपचारिक कार्रवाई कर अपने कर्तव्यों से पल्ला झाड़ते रहे।

अब एक बार फिर यह सवाल उठ रहा है कि यदि विभाग सच में सजग था, तो इतनी बड़ी मात्रा में माइका का स्टॉक आखिर कैसे इकट्ठा हो गया। क्या यह सब एक-दो दिन का खेल था या फिर लंबे समय से यह धंधा प्रशासन की आंखों के सामने पलता रहा?

मजदूरों के नाम पर शोषण, माफियाओं की चांदी
इस अवैध कारोबार की सबसे बड़ी कीमत गरीब मजदूरों ने चुकाई है। ढिबरा चुनने वाले हजारों मजदूरों में बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं शामिल हैं। माइका की धूल से होने वाली बीमारियां, टीबी, सिलिकोसिस और कुपोषण यहां आम बात हो चुकी है। कई बार खदान धंसने से मौतें भी हुईं, लेकिन मुआवजा और पुनर्वास सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया।

दूसरी ओर, इस पूरे नेटवर्क को चलाने वाले कारोबारी और बिचौलिये शहरों में आलीशान जिंदगी जीते रहे। यही वजह है कि प्रशासन की ताजा कार्रवाई को लोग एक उम्मीद की नजर से देख रहे हैं, लेकिन साथ ही संदेह भी जता रहे हैं।

सवालों के घेरे में विभागीय भूमिका
इस कार्रवाई के बाद कई सवाल फिर से खड़े हो गए हैं। आखिर वन विभाग और खनन विभाग इतने सालों तक क्या करता रहा? क्या सिर्फ तिसरी और गावां के जंगली इलाकों में ही माइका का कारोबार होता रहा, या फिर शहरों में भी इसका बड़ा नेटवर्क फैला हुआ है?

स्थानीय लोगों का कहना है कि तिसरी-गावां से निकाला गया माइका गिरिडीह शहर के विभिन्न इलाकों में लाया जाता है, जहां इसे गोदामों में स्टॉक किया जाता है। इसके बाद प्रोसेसिंग कर इसे अन्य राज्यों में भेज दिया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रशासन की कार्रवाई सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक सीमित रहेगी या फिर शहरी धंधेबाजों पर भी शिकंजा कसेगा।

शहरी माफियाओं पर कब होगी कार्रवाई?
अब तक की कार्रवाई मुख्य रूप से तिसरी और गावां तक ही सीमित रही है। लेकिन शहर में बसे कथित माइका कारोबारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि यही वे लोग हैं, जो इस पूरे नेटवर्क के “मास्टरमाइंड” माने जाते हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों का कहना है कि अगर इस धंधे पर सच में रोक लगानी है, तो जड़ तक जाना होगा। केवल गोदाम सील करने या कुछ बोरा जब्त करने से समस्या खत्म नहीं होगी।

उम्मीद भी, आशंका भी
केवटाटांड में हुई ताजा छापेमारी निश्चित रूप से प्रशासन की बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। इससे माइका माफियाओं के बीच डर जरूर पैदा हुआ है। लेकिन गिरिडीह के लोग यह भी जानते हैं कि ऐसे अभियान पहले भी चले हैं और कुछ समय बाद सब कुछ पहले जैसा हो गया। अब देखना यह है कि क्या यह कार्रवाई एक सतत अभियान की शुरुआत है या फिर एक और प्रतीकात्मक छापेमारी बनकर रह जाएगी। लोगों की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि आने वाले दिनों में प्रशासन शहरी माइका कारोबारियों, विभागीय मिलीभगत और पूरे नेटवर्क पर कितनी सख्ती से कार्रवाई करता है।

गिरिडीह की धरती अब सिर्फ माइका नहीं, जवाब भी मांग रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *