झारखंड के सांसदों के फंड का हाल: 2780 कार्य में सिर्फ 85 पूरे, 139 करोड़ में से सिर्फ 27% खर्च
कुमार अमित , रांची: झारखंड के सांसदों को विकास कार्यों के लिए आवंटित राशि और जमीन पर किए गए काम के बीच बेहद चौंकाने वाला अंतर सामने आया है। राज्य के 14 सांसदों को अब तक कुल ₹139.65 करोड़ की राशि दी गई, लेकिन इसमें से केवल ₹38.02 करोड़, यानी मात्र 27% धनराशि ही खर्च हो पाई है। काम के मामले में स्थिति और भी गंभीर है—2780 अनुशंसित कार्यों में से केवल 85 कार्य पूरे हुए हैं, जबकि बड़ी संख्या में योजनाएं अब तक धरातल पर शुरू भी नहीं हो सकी हैं।
सांसदों के प्रदर्शन की असमान तस्वीर
झारखंड के अलग-अलग संसदीय क्षेत्रों की रिपोर्ट बताती है कि सांसद निधि के उपयोग की स्थिति बेहद असमान है। जहाँ कुछ सांसदों ने प्रगति दिखाई है, वहीं कई क्षेत्रों में फंड लगभग बेकार पड़ा है।
हजारीबाग में सबसे बुरा हाल—एक भी काम नहीं, 0% खर्च
हजारीबाग के सांसद मनीष जायसवाल का रिकॉर्ड सबसे निराशाजनक रहा। उन्हें आवंटित ₹9.80 करोड़ का एक भी रुपया खर्च नहीं हुआ, और न ही किसी कार्य की अनुशंसा की गई। यह स्थिति उस समय और गंभीर दिखती है जब जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी की शिकायतें लगातार सामने आती रही हैं।
रांची में सबसे अधिक खर्च—संजय सेठ ने 6.77 करोड़ लगाए
रांची के सांसद संजय सेठ ने सबसे अधिक ₹6.77 करोड़ खर्च किए। उन्होंने कुल 19 कार्य पूरे कराए, जो झारखंड के सांसदों में सर्वोच्च प्रदर्शन है। हालांकि राजधानी क्षेत्र में भी अभी कई कार्य कागज़ों में लिमिटेड हैं, लेकिन खर्च के मामले में रांची शीर्ष पर रहा।
दुमका में सबसे अधिक कार्य पूर्ण—नलिन सोरेन ने 36 काम निपटाए
दुमका से सांसद नलिन सोरेन ने क्षेत्र में सबसे अधिक 36 कार्य पूरे किए। उन्होंने ₹4.66 करोड़ का उपयोग किया, जो जमीन पर काम की वास्तविक मौजूदगी को दर्शाता है। दुमका जैसे बड़े भूगोल और आदिवासी बहुल इलाके के लिए यह प्रदर्शन उल्लेखनीय माना जा रहा है।
गिरिडीह में 632 कार्यों की अनुशंसा, लेकिन एक भी पूरा नहीं
गिरिडीह के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने आश्चर्यजनक रूप से सबसे अधिक 632 कार्यों की अनुशंसा की, लेकिन इनमें से एक भी कार्य पूर्ण नहीं हुआ। लगभग ₹2.46 करोड़ खर्च कर दिए गए, लेकिन काम की प्रगति शून्य है। यह स्थिति स्थानीय प्रशासनिक ढांचे की जटिलताओं और संवेदनशील क्षेत्रों में परियोजनाओं की धीमी गति को दर्शाती है।
धनबाद और राजमहल में भी बेहद धीमी प्रगति
- धनबाद के सांसद ढुल्लू महतो—146 कार्यों की अनुशंसा, एक भी पूरा नहीं, जबकि ₹1.98 करोड़ खर्च हुए।
- राजमहल के सांसद कालीचरण सिंह—382 अनुशंसाएं, लेकिन केवल ₹0.02 करोड़ खर्च, यानी योजनाएं लगभग ठप।
कोडरमा की स्थिति भी बेहद कमजोर
कोडरमा से सांसद अन्नपूर्णा देवी ने केवल 1 कार्य पूरा किया। हालांकि कुछ खर्च दिखता है—₹0.83 करोड़—लेकिन जमीन पर बदलाव न के बराबर।
कुल तस्वीर—योजनाएं कागज़ पर, क्रियान्वयन धरातल पर गायब
- ₹139.65 करोड़ का फंड → सिर्फ ₹38.02 करोड़ खर्च
- 2780 प्रस्तावित काम → सिर्फ 85 पूरे
- औसत खर्च—मात्र 27%
यह आंकड़े बताते हैं कि सांसद फंड का उपयोग झारखंड में गंभीर प्रशासनिक और राजनीतिक लापरवाही का प्रतीक बन चुका है। बड़ी संख्या में कामों के “अनुशंसा स्तर” पर ही अटके रहने से स्पष्ट है कि सांसदों और जिला प्रशासन के बीच तालमेल की खाई बढ़ी है।
सवाल—क्या जनता तक पहुँच रहा सांसद निधि का लाभ?
ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, पेयजल, पुल, स्कूल भवन और सामुदायिक सुविधाओं की भारी कमी के बीच सांसद निधि का उपयोग न होना सीधे तौर पर क्षेत्र की जनता का नुकसान है।
चुनावी वादों में विकास की लकीर खींचने वाले सांसद यदि उपलब्ध संसाधन का उपयोग ही नहीं कर पा रहे, तो जनता सवाल पूछने का अधिकार रखती है।



