रांची में आदिवासी संगठनों की आक्रोश महारैली
रांची: रांची में रविवार को झारखंड के आदिवासी संगठनों ने एकजुट होकर कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग के विरोध में विशाल आक्रोश महारैली निकाली। रैली में हजारों की संख्या में आदिवासी पुरुष और महिलाएं पारंपरिक पोशाक और हथियारों के साथ पहुंचे और अपने हक और अधिकार की रक्षा के लिए एकजुटता दिखाई।
यह रैली मोराबादी मैदान से शुरू होकर पद्माश्री रामदयाल मुण्डा फुटबॉल स्टेडियम तक निकाली गई। रास्ते भर पारंपरिक नारों और गीतों के बीच प्रदर्शनकारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
पारंपरिक हथियारों के साथ आदिवासियों ने दिखाई ताकत
आदिवासी समुदाय के लोग अपने पारंपरिक तीर-धनुष, भाला, हंसिया और दाब के साथ रैली में पहुंचे। उन्होंने कहा कि यह केवल विरोध नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व की लड़ाई है। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अंग्रेजों के समय कुड़मी समाज आदिवासियों से अलग हुआ था, और स्वतंत्र भारत में भी यह स्पष्ट रूप से दर्ज है। अब उन्हें एसटी में शामिल करने की मांग आदिवासी अधिकारों पर अतिक्रमण जैसा है। कई प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि राजनीतिक लाभ के लिए सरकार इस मांग पर कोई कदम उठाती है तो आदिवासी समाज सड़कों पर उग्र आंदोलन करेगा।
“यह अस्तित्व की लड़ाई है” — अजय तिर्की
केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा, “यह हमारे अस्तित्व की लड़ाई है। 2018 में भी आदिवासी समुदाय कुड़मियों को एसटी का दर्जा देने के विरोध में सड़कों पर उतरा था। ट्राइब्यूनल और कोर्ट ने भी इस मांग को खारिज कर दिया है, फिर भी इसे राजनीतिक लाभ के लिए दोबारा उठाया जा रहा है।” उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि आदिवासी समाज अपने अधिकारों से समझौता नहीं करेगा।
महिलाओं की भी रही मजबूत भागीदारी
आक्रोश महारैली में बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाएं भी शामिल हुईं। उन्होंने भी मंच से अपनी आवाज बुलंद की। कुमुदनी प्रभावती ने कहा, “हमें मजबूर किया जा रहा है, लेकिन झारखंड की आदिवासी महिलाएं शेरनी हैं और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार हैं।” महिलाओं ने कहा कि वे हर स्तर पर इस आंदोलन का हिस्सा रहेंगी और किसी भी कीमत पर अपने अस्तित्व पर खतरा नहीं आने देंगी।
कई संगठनों ने मिलकर दिया आंदोलन को बल
इस आक्रोश महारैली में आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा, केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी नारी सेना, आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा समिति, आदिवासी एकता मंच और आदिवासी अधिकार मंच सहित कई संगठन शामिल हुए। सभी संगठनों ने एक स्वर में कहा कि आदिवासी समुदाय का इतिहास, पहचान और अधिकार किसी भी कीमत पर कुड़मी समाज को एसटी में शामिल कर कमजोर नहीं होने दिया जाएगा। मार्च के बाद हुई जनसभा में वक्ताओं ने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ शुरुआत है और जरूरत पड़ी तो इसे और बड़ा रूप दिया जाएगा।
कुड़मी समाज को एसटी में शामिल करने की मांग झारखंड में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। आदिवासी संगठनों का यह प्रदर्शन सरकार और राजनीतिक दलों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि आदिवासी समुदाय अपने अस्तित्व और अधिकारों को लेकर किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं है। आने वाले समय में यह मुद्दा राज्य की राजनीति को और गर्मा सकता है।


