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मोदी सरकार का डिजिटल सुरक्षा पर बड़ा फैसला: अब हर मोबाइल में अनिवार्य होगा ‘संचार साथी ऐप’, हटाना भी संभव नहीं

Sanchaar Saathi

डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करने के लिए केंद्र का निर्णायक कदम—संचार साथी ऐप अब हर नए फोन में प्री-इंस्टॉल रहेगा; विपक्ष ने कहा—जासूसी का नया हथियार, निजता पर खतरा

नई दील्ली: डिजिटल सुरक्षा को व्यापक और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने सोमवार को एक अहम निर्णय लिया है। दूरसंचार विभाग (DoT) ने निर्देश जारी करते हुए कहा है कि अब भारत में बनने वाले या विदेश से आयात किए जाने वाले हर मोबाइल फोन में ‘संचार साथी ऐप’ पहले से इंस्टॉल होना अनिवार्य होगा, और यह ऐप फोन से हटाया नहीं जा सकेगा। यह नियम एपल, सैमसंग, ओप्पो, वीवो, शाओमी सहित सभी मोबाइल कंपनियों पर लागू होगा।

सरकार का कहना है कि इस आदेश का उद्देश्य एक ऐसी प्रणाली स्थापित करना है, जिसमें हर नागरिक को मोबाइल सुरक्षा, धोखाधड़ी पहचान और सत्यापन से संबंधित सुविधाएँ बिना किसी अतिरिक्त प्रक्रिया के उपलब्ध कराई जा सकें। इसलिए मोबाइल कंपनियों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि फोन सेट करते समय यह ऐप स्पष्ट रूप से दिखाई दे और आसानी से खोला जा सके, ताकि किसी भी यूजर को इसके इस्तेमाल में दिक्कत न आए।

विपक्ष का हमला: “जासूसी का नया रूप, नागरिकों की प्राइवेसी खतरे में”
सरकार के इस निर्णय के तुरंत बाद राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने संचार साथी ऐप को “जासूसी उपकरण” बताते हुए केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि यह निर्णय नागरिकों की निजी जिंदगी में दखल देने का प्रयास है और सरकार इस ऐप के माध्यम से फोन में हो रही गतिविधियों पर नजर रख सकती है।

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प्रियंका गांधी ने कहा कि नागरिकों को अपने परिवार और दोस्तों को संदेश भेजने, बातचीत करने और निजी क्षण साझा करने का मौलिक अधिकार है, और सरकार को इस अधिकार में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं। उन्होंने इसे तानाशाही की ओर बढ़ते कदम की तरह बताया और कहा कि साइबर सुरक्षा के नाम पर ऐसा सिस्टम लागू करना उचित नहीं है, जो पूरी आबादी को निगरानी के दायरे में ला दे।

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सरकार का पक्ष: डिजिटल धोखाधड़ी और नकली मोबाइल पर रोक के लिए जरूरी कदम
सरकार इस पूरी प्रक्रिया को साइबर सुरक्षा के दृष्टिकोण से आवश्यक बता रही है। DoT का कहना है कि संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से इंस्टॉल करने का उद्देश्य नागरिकों को नकली फोनों से बचाना, खोए हुए फोन को तुरंत ब्लॉक कराना, संदिग्ध लिंक और कॉल की शिकायत दर्ज करना और किसी नागरिक के नाम पर कितने सिम कार्ड सक्रिय हैं, यह जानकारी तुरंत उपलब्ध कराना है। सरकार का तर्क है कि ऐप लोगों के डिजिटल जीवन को अधिक सुरक्षित, नियंत्रित और पारदर्शी बनाने में सक्षम है।

इसके साथ ही DoT ने मोबाइल कंपनियों को यह भी निर्देश दिया है कि जो फोन पहले से बाजार में मौजूद हैं, उनमें भी सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से यह ऐप उपलब्ध कराया जाए। कंपनियों के लिए 90 दिन की समयसीमा तय की गई है जिसके भीतर उन्हें यह नियम लागू करना अनिवार्य होगा।

क्या है संचार साथी ऐप और कैसे करता है काम?
संचार साथी ऐप वर्ष 2023 में DoT द्वारा लॉन्च किया गया था। यह ऐप मोबाइल फोन की सुरक्षा से संबंधित सेवाओं का एक केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है। इसके माध्यम से किसी यूजर को अपने खोए या चोरी हुए फोन को ब्लॉक कराने की सुविधा मिलती है। इस ऐप के जरिए यूजर यह भी पता लगा सकता है कि उसके नाम पर कितने सिम कार्ड सक्रिय हैं और यदि कोई संदिग्ध सिम कार्ड मिल जाता है, तो उसे तुरंत बंद कराने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है।

यह ऐप नकली मोबाइल फोन की पहचान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही संदिग्ध कॉल, फर्जी लिंक और स्पैम नंबरों की रिपोर्टिंग भी इससे की जा सकती है। खास बात यह है कि इस ऐप के इस्तेमाल के लिए किसी OTP वेरिफिकेशन की आवश्यकता नहीं होती, जिससे आम यूजर भी इसे आसानी से चला सकता है।

अब तक का रिकॉर्ड: कितने लोगों के लिए कारगर साबित हुआ ऐप
संचार साथी ऐप की प्रभावशीलता के आंकड़े भी सरकार के इस कदम को मजबूत आधार देते हैं। अब तक 42 लाख से अधिक मोबाइल फोन ब्लॉक किए जा चुके हैं और 26 लाख से ज्यादा चोरी हुए या खोए हुए फोन की जानकारी उपलब्ध कराई गई है। लगभग एक करोड़ से अधिक लोग इस ऐप पर रजिस्टर कर चुके हैं और इसे एक करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया गया है। Apple Store से ही इसे नौ लाख से अधिक बार डाउनलोड किया गया है।

इसके अलावा ऐप के माध्यम से यह जानने के लिए कि किसी व्यक्ति के नाम पर कितने सिम चल रहे हैं, 288 लाख से ज्यादा बार जांच की गई है और इनमें से 254 लाख से अधिक मामलों में समाधान भी किया जा चुका है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि ऐप तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और जनता के लिए उपयोगी साबित हो रहा है।

विवाद की वजह: ऐप फोन में स्थायी रहेगा, डेटा गोपनीयता पर सवाल
इस पूरे मामले के विवाद का केंद्र यही है कि यह ऐप फोन में स्थायी रूप से इंस्टॉल रहेगा और यूजर्स इसे डिलीट करने में सक्षम नहीं होंगे। साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि जब किसी ऐप को सिस्टम लेवल एक्सेस दिया जाता है, तो उसके पास कई तरह की संवेदनशील जानकारी तक पहुंच की संभावना होती है।

यही कारण है कि विपक्ष इसे डेटा गोपनीयता का गंभीर मुद्दा मान रहा है। जबकि सरकार यह दावा करती है कि ऐप नागरिकों की सुरक्षा के लिए है और उनकी निजी जानकारी से इसका कोई लेना-देना नहीं है।

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