झारखंड में गो सेवा को आत्मनिर्भरता की राह: हेमंत सरकार के प्रयासों पर राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ

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पारंपरिक आस्था और आधुनिकता के संगम पर केंद्रित कार्यशाला में देशभर के विशेषज्ञों की भागीदारी

झारखंड गौ सेवा आयोग की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला शुरू

रांची, 19 जून 2025: हेसाग स्थित पशुपालन भवन के सभागार में झारखंड गौ सेवा आयोग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला की भव्य शुरुआत हुई। कार्यशाला का विषय था: “पारिस्थितिकीय संतुलन एवं आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में गो सेवा के क्षेत्र में उभरती चुनौतियां एवं संभावनाएं”।

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इस कार्यक्रम का उद्घाटन कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने दीप प्रज्वलन कर किया। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि झारखंड गौ सेवा आयोग पारंपरिक गौ आधारित जीवन प्रणाली को आधुनिक आर्थिक ढांचे में रूपांतरित करने की दिशा में सराहनीय पहल कर रहा है। उन्होंने कहा,

“गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य सरकार हरसंभव सहयोग करेगी। हमारा उद्देश्य सिर्फ संरक्षण नहीं, बल्कि नवाचार के साथ गौ आधारित उद्यमों को प्रोत्साहित करना है।”

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राज्य की आवश्यकता अनुसार बनाई जा रही नई योजनाएं

कार्यक्रम के दूसरे प्रमुख वक्ता, राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि गौ आधारित अर्थव्यवस्था केवल सांस्कृतिक या धार्मिक पहलू नहीं, बल्कि आर्थिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा,

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“झारखंड की 4 करोड़ की आबादी में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता बेहद कम है। सरकार का लक्ष्य है कि अगले तीन वर्षों में इसे 450 ग्राम प्रतिदिन तक ले जाया जाए। इसके लिए गौ सेवा आयोग की भूमिका निर्णायक होगी।”

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वित्त मंत्री ने आयोग को अगले बजट में गौशालाओं के आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के लिए विशेष योजना तैयार करने का सुझाव भी दिया।

राष्ट्रव्यापी सहभागिता, बहुआयामी विचार-विमर्श

इस कार्यशाला में देशभर के विभिन्न राज्यों से आये विशेषज्ञ, गौशाला प्रबंधन से जुड़े प्रतिनिधि, अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिक और नीति निर्माता शामिल हैं।
प्रमुख वक्ताओं में डॉ वल्लभभाई कथीरिया (पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं गौ संरक्षण विशेषज्ञ), सुनील मानसिंहका (गौ अनुसंधान विकास केंद्र, नागपुर), राजीव रंजन प्रसाद (अध्यक्ष, झारखंड गौ सेवा आयोग), राजू गिरी (उपाध्यक्ष), अबु बकर सिद्दीक पी (सचिव, कृषि एवं पशुपालन विभाग), डॉ संजय प्रसाद (सचिव, आयोग), और डॉ प्रभात पांडेय शामिल रहे।

विशेषज्ञों ने पंचगव्य चिकित्सा, A2 दूध की वैज्ञानिक उपयोगिता, गोमूत्र-गोबर आधारित बायोप्रोडक्ट्स, गोपालन आधारित महिला सशक्तिकरण मॉडल्स और पारिस्थितिकी तंत्र में पशुधन की भूमिका पर अपने विचार रखे।

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गौ आधारित उद्यमिता और महिला सशक्तिकरण

राज्य में गौ आधारित माइक्रो उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए गौशालाओं से बायो फर्टिलाइज़र, अगरबत्ती, दीप, और अन्य उपयोगी उत्पाद तैयार करने की योजना को विशेष बल दिया गया है। अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने बताया कि

“5500 महिलाओं को स्वावलंबन के लक्ष्य से प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि वे गौ आधारित उत्पादों के माध्यम से स्वरोजगार कर सकें। उनके उत्पादों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी लाया जाएगा।”

उपाध्यक्ष राजू गिरी ने बताया कि आने वाले समय में 5000 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें स्टार्टअप मोड में गोबर आधारित उत्पादों के उत्पादन और विपणन से जोड़ा जाएगा।

“गौ माताएं हमारी संस्कृति और अर्थव्यवस्था की धुरी”: वल्लभभाई कथीरिया

पूर्व मंत्री वल्लभभाई कथीरिया ने कहा कि भारतीय सभ्यता के हर चरण में गाय की भूमिका केंद्रीय रही है। आज जरूरत है वैज्ञानिक नजरिए से इसकी पुनर्परिभाषा की। उन्होंने कहा कि

“गोबर और गोमूत्र का वैज्ञानिक एवं व्यवसायिक इस्तेमाल अब पूरी दुनिया में हो रहा है। इस दिशा में भारत फिर से नेतृत्व कर सकता है।”

चार सत्रों में होगा गहन मंथन

कार्यशाला में चार तकनीकी सत्र आयोजित किए गए हैं:

  1. पारिस्थितिकी एवं आधुनिकता में गो सेवा की भूमिका
  2. गौ आधारित उद्यमिता विकास
  3. पंचगव्य चिकित्सा प्रणाली
  4. नस्ल संरक्षण, A2 दूध, गोवंशीय कानूनों की समीक्षा

इन सत्रों के निष्कर्षों को झारखंड सरकार की भविष्य की पशुधन नीति में शामिल करने की तैयारी है।


यह कार्यशाला न केवल झारखंड के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत करने जा रही है कि किस प्रकार गौ सेवा को धार्मिक या पौराणिक दायरे से निकालकर व्यावसायिक, सामाजिक और पर्यावरणीय विकास की मुख्यधारा में लाया जा सकता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा तैयार किया गया रोडमैप झारखंड को पशुधन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने में निर्णायक सिद्ध हो सकता है।


रिपोर्ट: अमित | Munadi Live | झारखंड की जनसंवेदनशील पत्रकारिता का सशक्त मंच

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