पाकुड़ में विस्थापितों का माइनिंग के खिलाफ बड़ा आंदोलन, पचूवारा सेंट्रल व नॉर्थ कोल ब्लॉक की खनन और ट्रांसपोर्टिंग ठप

पाकुड़, 16 जून 2025: झारखंड के पाकुड़ जिले से एक बड़ी खबर सामने आई है जहां अमड़ापाड़ा स्थित पचूवारा सेंट्रल और नॉर्थ कोल ब्लॉक की खदानों में विस्थापित रैयतों ने बुनियादी सुविधाओं की मांग को लेकर कोयला खनन और ट्रांसपोर्टिंग कार्य को पूरी तरह ठप कर दिया है।

आंदोलनकारियों ने साफ कर दिया है कि जब तक प्रबंधन समझौते के अनुसार सुविधाएं नहीं देता, तब तक अनिश्चितकालीन धरना और खनन रोक जारी रहेगा।
क्या है मामला?
दोनों खदानों से विस्थापित हुए कटहल डीह, तालझारी, आलूबेरा, चिल्गो, बिशनपुर जैसे गांवों के सैकड़ों ग्रामीण रविवार की सुबह खदान परिसर पहुंचे और खनन कार्य को रोकते हुए माइन साइट पर ही धरना शुरू कर दिया।
ग्रामीणों का आरोप है कि खनन की शुरुआत से पहले प्रबंधन और विस्थापितों के बीच हुए एमओयू (समझौता पत्र) में जो शर्तें तय की गई थीं, उन पर अब तक अमल नहीं हुआ है।


क्या कह रहे हैं ग्रामीण?
धरना स्थल पर मौजूद रंजन मरांडी, प्रधान मुर्मू, कॉर्नेलियस हेंब्रम, मुंशी टुडू, रमेश मुर्मू, सुरेश टुडू जैसे दर्जनों ग्रामीण नेताओं ने बताया कि प्रबंधन न तो खेती योग्य मुआवजा देती है और न ही उपयोग की गई जमीन को समतल कर वापस करती है। पेयजल, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आवास जैसी मूलभूत सुविधाएं अब तक नहीं मिली हैं। पांच से सात वर्षों से विस्थापित लोग ठगे जा रहे हैं, पर कोई सुनवाई नहीं हो रही।
प्रशासन और कंपनी की बातचीत बेनतीजा
धरना को समाप्त कराने के प्रयास में एसडीपीओ महेशपुर, थाना प्रभारी सहित वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के अधिकारी रामाशीष चटर्जी मौके पर पहुंचे और देर शाम 7 बजे तक आंदोलनकारियों से वार्ता की, लेकिन ग्रामीण अपने रुख पर अड़े रहे।
ग्रामीणों ने साफ कहा कि जब तक लिखित रूप से समाधान नहीं मिलेगा, धरना जारी रहेगा।
क्या हैं विस्थापितों की प्रमुख मांगें?
- समझौते में तय सुविधाएं – रोजगार, स्कूल, अस्पताल, पानी-बिजली, सड़क तत्काल उपलब्ध कराई जाएं
- उचित मुआवजा और खेती योग्य भूमि लौटाने की प्रक्रिया शुरू की जाए
- उपयोग की गई भूमि को समतल कर रैयतों को सौंपा जाए
- सभी विस्थापितों को पुनर्वास और राहत पैकेज दिया जाए
- प्रबंधन की जवाबदेही तय की जाए
मुनि हांसदा का समर्थन: “शर्तों का पालन नहीं, तो खनन नहीं”
प्रख्यात विस्थापित आंदोलनकारी मुनि हांसदा ने भी आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा:
“जब तक विस्थापितों को उनका अधिकार, मुआवजा और सुविधा नहीं मिलती, तब तक खनन और ट्रांसपोर्टिंग पूरी तरह बंद रहेगा।”
डीसी को सौंपा मांग पत्र, 7 दिन का अल्टीमेटम
विस्थापित ग्रामीणों ने जिला उपायुक्त के नाम एक मांग पत्र सौंपते हुए 7 दिनों का अल्टीमेटम दिया है। यदि इस अवधि में मांगें पूरी नहीं होतीं, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।
झारखंड में विकास परियोजनाओं और विस्थापन के बीच लगातार टकराव देखने को मिल रहा है। पचूवारा कोल माइंस का यह आंदोलन सिर्फ सुविधाओं की मांग नहीं, बल्कि सिस्टम से उपेक्षित समुदायों की आवाज भी है। अब यह देखना अहम होगा कि क्या प्रशासन और प्रबंधन मिलकर इस तनाव को शांतिपूर्वक हल निकालते हैं, या स्थिति और गंभीर होती है।
यह एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसकी निगरानी राज्य प्रशासन और नीतिनिर्माताओं द्वारा प्राथमिकता पर की जानी चाहिए।